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५० जैन कथा कोष ___ एक बार आचार्य वीरभद्र पाटलिपुत्र पधारे। उनकी देशना सुनने राजा जितशत्रु और आरामशोभा भी गयी। आरामशोभा ने आचार्यश्री से जिज्ञासा की—'भगवन् ! मेरा बचपन बड़े कष्टों में बीता। किन्तु युवावस्था सुख में बीती । मैं गरीब घर में पैदा होकर भी पटरानी बन गई। यक्ष की कृपा भी प्राप्त हुई। मेरे जीवन के उतार-चढ़ाव का कारण क्या है? मैंने पूर्वजन्म में क्या पापपुण्य किये?'
आचार्यश्री ने उसका पूर्वभव सुनाया—'तुम चम्पापुरी के कुलधर सेठ की सेठानी कुलानन्दा की आठवीं पुत्री थीं। तुम्हारे पैदा होते ही सेठ निर्धन हो गये। इसीलिए तुम्हारा नाम निर्भगा पड़ गया। माता-पिता ने उपेक्षा भाव से तुम्हारा पालन किया। जब तुम युवती हो गईं तो तुम्हारा विवाह कौशलपुर के निर्धन वणिक्-पुत्र नन्दन के साथ कर दिया गया। वह तुम्हें अवन्ती नगरी के एक चैत्य में सोती हुई छोड़ गा। तुम आश्रय के लिए नगरी में एक सेठ मणिभद्र के पास पहुँची। वह द्वादशव्रती श्रमणोपासक था। उसने तुम्हें पुत्री बनाकर रख लिया। उसके सम्पर्क से तुम्हारी धर्म में रुचि हुई। तुमने व्रतों का पालन किया और श्राविका बन गईं। एक बार मणिभद्र का उद्यान किसी मिथ्यात्वी देव के उत्पात से सूख गया तो तुमने अपने शीलव्रत के प्रभाव से उसे हरा कर दिया।'
आचार्यश्री ने आगे कहा—'पूर्वभव के प्रारंभिक जीवन में तुमने धर्माचरण नहीं किया, इसलिए इस जन्म के प्रांरभिक जीवन अथवा बाल्यकाल में तुम दुःखी रहीं। बाद के जीवन में पूर्वभव में तुमने धर्माचरण किया तो इस जन्म में भी युवावस्था में सुख पाया। मणिभद्र इस जन्म में नागदेव बना तो अपने उद्यान को हरा करने के फलस्वरूप उसने तुम्हें दिव्य उद्यान दिया और सदा तुम्हारी सहायता की।'
धर्म का ऐसा महान सुप्रभाव सुनकर राजा जितशत्रु प्रतिबुद्ध हो गया। अपने पुत्र मलयसुन्दर को राज्य देकर उसने दीक्षा ले ली। आरामशोभा भी प्रव्रजित हो गई। वह साध्वी संघ की प्रवर्तिनी भी बन गई।
दोनों मुमुक्षुओं ने संयम की साधना करके पंडितमरण किया और स्वर्ग गये। पुनः साधना करके ये दोनों मोक्ष प्राप्त करेंगे। -सम्मत्त सत्तति (गुणशेखरसूरिकृत टीका के अनुसार)
-वर्धमान देशना १