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४८ जैन कथा कोष का निश्चय किया। आधी रात के समय आरामशोभा से बोली-'हमारे कुल में ऐसी रीति है कि पहली संतान के बाद माता अपनी परछाईं कुएँ के जल में देखा करती है, इससे बच्चा दीर्घायु होता है।' ___ आरामशोभा अपनी सौतेली माता की बात पर विश्वास करके उसके साथ कुएँ पर चली गई। ज्योंही वह अपनी परछाई कुएँ के जल में देखने लगी कि सौतेली माँ ने उसे धक्का दे दिया। वह कुएँ में गिर गई।
सौतेली माता लौटी और उसने तुरन्त ही अपनी पुत्री को आरामशोभा के स्थान पर लिटा दिया। दासियों ने आरामशोभा के स्थान पर दूसरी स्त्री को देखा तो उन्होंने ऐतराज किया। इस पर उन्हें कह दिया गया कि कुएँ में अपनी परछाईं देखने से इसका रूप बदल गया है। साथ ही राजा से दण्डित करवाने की धमकी भी दे दी गई। दासियाँ चुप हो गईं। वे क्या कहती?
अब सौतेली माँ की पुत्री आरामशोभा बनकर राजा जितशत्रु के महलों में पहुँच गई। राजा ने रंग-रूप बदलने का कारण पूछा तो उसे भी यही जवाब मिला। उसने कहा-'तुम्हारे साथ रहने वाला उद्यान कहाँ है?' तो नकली आरामशोभा ने बहाना बनाया—कुछ दिन बाद उसे बुलाऊँगी।
राजा जितशत्रु चुप हो गया, लेकिन उसके मन में यह संशय घर पर गया कि 'यह आरामशोभा नहीं है, कोई दूसरी स्त्री है।' इसीलिए उसने उसके साथ पत्नी का संबंध न रखा, सिर्फ मुँह से ही बोलता रहा। साथ ही चौकन्ना भी रहा और इस रहस्य को जानने की उधेड़-बुन में लगा रहा। ___ इधर कुएँ में गिरते-गिरते आरामशोभा ने नागदेव का स्मरण किया। नागदेव उसे पाताललोक में ले गया। उसके साथ ही उसका उद्यान भी पाताललोक में पहुँच गया। वह नागदेव के आश्रय में सुख से रहने लगी।
स्त्री कितनी भी सुखी हो, लेकिन उसे अपने पति और पुत्र की याद आती ही है। आरामशोभा को भी अपने पति और पुत्र की याद आने लगी। वह उनसे मिलने को तड़पने लगी। उसने नागदेव से अपनी इच्छा प्रकट की कि 'मैं अपने पति और पुत्र से मिलना चाहती हूँ।'
नागदेव ने कहा—'पति से मिलने पर तुम्हारी सौतेली बहन का अहित होगा; क्योंकि वह इस समय तुम्हारे स्थान पर नकली आरामशोभा बनकर रह रही है।'
यह सुनकर आरामशोभा ने सोचा कि अपनी बहन का अहित नहीं