Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ३७०-४०० वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
2017"
२६-नालपुर के प्राग्वटवंशी , भुतडा ने , २७-चुंदडी के चिंचटगौ० , झूजार ने ,
पाठक सोच सकते हैं कि वह जमाना कैसा लघुकर्मियों का था कि थोड़ा सा उपदेश लगता कि चट से दीक्षा लेने को तैयार हो जाते थे । और इस प्रकार दीक्षा लेने से ही साधुओं की बहुल्यता थी प्रत्येक प्रान्त में साधुओं का विहार होता था। और करोड़ों की संख्या वाले समुदाय में इस प्रकार दीक्षा का होना कोई आश्चर्य की बात भी नहीं थी।
। आचार्यश्री के शासन में तीर्थों के संघादि सद्कार्य १-जाबलीपुर से बाप्पनाग गौत्रीय शाह पुनड़ ने श्रीशत्रुजय का संघ निकाला २-फलवृद्धि से भूरिंगौ० , सरवाण ने , . ३-ईडर नगर से वीरहटगी.
सांगण ने ४-नारणपुर से श्रेष्टिगौ०
हडमल ने ५-नागपुर से अदित्य० गौ० , आशा ने ६-मंगलपुर से श्रेष्टिगौ०
मुकुन्द ने ७-रत्नपुर से कुलभद्रगौ०
पुनड़ ८-गुड़नगर से राववीर
" चुड़ा ने ९-देवपट्टन से मल्लगी० , केसा ने १४-डीसांणी से चरडगौ.
भीखा ११-दशपुर से श्रेष्टिगौ० १२-चंदेरी से सुघड़गौ०
भैसा ने १३-पोतनपुर से डिडुगौ०
मलुक ने १४-रानीपुर से करणाट.
मेकरण ने , १५-रातदुर्ग से तप्तभट्ट.
सुंमण ने , १६-लोद्रवापट्टन से बापनाग०
लाला ने , १७-शाकम्भरी से सुचंति
नाथु ने , १८--मुग्धपुर का श्रीमालवंशी गंगा युद्ध में काम आये, उसकी स्त्री सती हुई, ५९-भवानीपुर का प्राग्वटवंशी
पाल्हा , २०-अगला का कनोजिया. , ठाकुरसी , २१-दन्तिपुर का ठिडुगौ० " धींगो , २२-षटॉप का बाप्प नाग० , पासड़ , २३-लाइपुरा का श्रेष्टिगौ०
सीर्थों के संघ निकाल कर यात्रा करना और भावुकों को यात्रा करवाना यह साधारण कार्य नहीं पर पुनानुषन्धी पुन्य एवं तीर्थंकर नाम कोपार्जन का मुख्य कारण है यही कारण था कि उस जमाना में
सूरीश्वरजी के शासन में संघादि सद्कार्य
डुगर
ने
साम्रदेव
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