Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ७७०-८००
शाह
किया था वहां अपना आयुष्य नजदीक जानकर मुनि शांतिसागर को सूरिमंत्र की आराधना करवा कर देवी सहायिका की सम्मति से तथा श्रेष्ठि गोत्रीय शाह पारस के महामहोत्सवपूर्वक मुनि शांतिसागर को सूरिपद से विभूषित कर आपका नाम रत्नप्रभसूरि रख दिया था। पश्चात श्राप आलोचना एवं सलेखना करते हुये १९ दिनों के अनशनत्रत पूर्वक समाधि के साथ नाशवान शरीर का त्याग कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया। देवी सच्चायिका द्वारा श्रीसंघ को ज्ञात हुआ कि आप पांचवां स्वर्ग में पधारे और महाविदेह में एक भव कर मोक्ष पधारेंगे । ऐसे जैनधर्म का उद्योत करने वाले सूरिजी के चरण कमलों में कोटि कोटि बन्दन हो।
प्राचार्यदेव के शासन में मुमुक्षुओं की दीक्षा १-वीरपुर के श्रेष्टिगौ. शाहा ___राजडा ने सूरि०
दीक्षाः । २-उज्जैन के भूरिगी. "
काना ने ३-दसपुर के भाद्रगौ० , शाखला ने ४-चंदेरी के मल्लगी
सुरजण ने ५---विराटपुर के चरडगौर
राणा ने ६-हमीरपुर के ब्राह्मण
शंकगदि ने ७- माधुपुर के राववीर
गोकल ने ८-वीरमपुर के आदित्य
रावल ने ९-पुलाइ के कुमटगौ०
मुजल ने १०-फेफावती के करणाटगौ० , भारत ने ११-चेनपुरा के बलाहगी० , धन्ना ने १२-वल्लभी के प्राग्वटवंशी १३-भवानीपुर के श्रीमालवंशी ,
कल्हण ने १४-चन्द्रावती के तप्तभट्टगौर १५- कोरंटपुर के बाप्पनागगौ० , सारंग ने १६-पाल्हिाका के श्रेष्टिगौर
भालु ने १७-बोनापुर के सुचंतिगौ० ,
समरा ने १८-भोजपुर के करणाटगौ०
समरथ ने १९-कुंतिनगरीके वीरहटगी।
मेघा ने २०-हापड़ के कुलभद्रगौ० , देवा ने २१-हुनपुर के शंक्खगौ० ,
दसरथ ने २२ --हर्षपुर के नागवंशी २३-आनंदपुर के श्रेष्टिगौ० ,
जतल ने २४-आसावरी के सुंचंतीगौ० , गोगलाने
२५-डाकीपुर के प्राग्वटवंशी , लछमणने सरिजी के शासन में भावुकों की दीक्षा )
कुंभा ने
संगण ने
फुधा ने
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