________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir + +8+ एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल दुप्पए, चउप्पए, अप्पए, एकिक्के पुण दुविहे पण्णत्ते तंजहा-परिक्कमेय वत्थुविणासेय॥५॥ से किं तं दुप्पए उवक्कमे?दुपए उवक्कमे-दुप्पयाणं,नडाणं,नट्टाणं जल्लाणं मलाणं, मुट्ठियाणं बेलंबगाणं, कहगाणं, पवगाणं, लासगाणं, आइक्खगाणं, लंखाणं, मंखाणं, तूणइल्लाणं, तुंबवीणियाणं, काबोयाणं, मागहाणं,से तं दुप्पए उवक्कमे // 6 // से किं तं च उप्पए। F अहो शिष्य ! सचित्त द्रव्य उपक्रम के तीन भेद कहे हैं. तद्यथा-५ द्विपद, 2 चतुष्पद और 1 अपद.* 2 इन में एकेक के दो 2 भेद कहे हैं तद्यथा-१ परिक्रम और 2 वस्तु विनाशक.॥५॥ अहो भगवन् ! द्विपद उपक्रम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! नृत्य करनेवाले, नाटक करनेवाले, रस्सीपर खेलनेवाले, मल्लयुद्ध करनेवाले, मुष्टियुद्ध करनेवाले, वेष बनानेवाले. ऐतिहासिकादि कसा करनेवाले, पवाडा गानेवाले, विरुदावाली बोलनेवाले, ज्योतिष निमित्त प्रकाशनेवाले, वंशाग्र खेलनेवाले. काष्ट पर या वस पर चित्र # लेखन कर बतानेवाले, वीणा बजानेवाले, तम्बादिक की वीणा बजानेवाले. कावर धारन करनेवाले. 'मागधिक-जय 2 शब्द बोलनेवाले, ये उपक्रम से अनेक काल का अभ्यास कर वस्तु उत्पन्न करते हैं। उसे उपक्रम कहना और विनाश करते हो उसे वस्तु विनाशक कहना. यह द्विपद उपक्रम के भेद हए. दीर्घ काल में जो कार्य सिद्ध होने का होवे वह स्थापनादि प्रयोग से थोडे काल में सिद्ध करे यह परिक्रम. ऐसे ही दीर्घ काल में बस्तु काविनाश होने का हो उस का शस्त्रादि प्रयोग से अल्प काल में विनाश करन व विमाशक. For Private and Personal Use Only