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अनगार
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- जिनको एक श्रुतज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमविशेषसे ही, न कि परोपदेशादिककी अपेक्षासे, सातिशय ज्ञान शप्त होजाता है उनको प्रत्येकवुद्ध कहते हैं । . श्रुतका स्वरूप पहले लिखा जाचुका है । समस्त श्रुतके ज्ञानियोंको श्रुतकेवली कहते हैं। ये श्रुतकेवली भी सर्वज्ञदेवके ही सदृश होते हैं ।
अर्हतदेवने मोक्षमार्ग तथा उसके विषयभूत समस्त पदार्थोंके विषयमें जो निरूपण किया है उसके ग्रंथरूप करनेका कार्य और उसके कर्ता गणधरादिक, दोनों ही, ग्रंथकारको यहांपर इष्ट हैं । जब कि दोनो इष्ट हैं तो 'जो जिसके गुणोंको चाहता है वह उसकी स्तुति भक्ति करता है' इस नीतिक अनुसार उन गणधरादिकोंकी स्तुति करना भी निश्चित है । अत एव इस निश्चयके अनुसार ही ग्रंथकारने गणधरादिक और उनके विशिष्ट कार्य दोनोंकी यहांपर स्तुति की है। ___इस प्रकार परमागम और उसके रचयिताओंकी स्तुति की । अब ग्रंथकार जिनागमका व्याख्यान करने वाले आरातीय आचार्योंकी स्तुति करते हैं।
ग्रन्थार्थतो गुरुपरम्परया यथाव-, च्छृत्वावधार्य भवभीरुतया विनेयान् । ये ग्राहयन्त्युभयनीतिबलेन सूत्रं,
रत्नत्रयप्रणायनो गणिनः स्तुमस्तान् ॥ ४॥ "जाती जाती यदुत्कृष्ट तत्तद्रत्नमिहोच्यते " -जो जिस जातिमें उत्कृष्ट होता है उसको उसका रत्न कहते हैं। इस वचनके अनुसार जीवोंके परिणामोंमें सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीन ही प्र
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अध्याय