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भनगार
जाती है कि किसी ऐसे दुस्तर और घोर जंगलमें जिसमें कि जलती हुई दावानलकी ज्वालाओंसे उसके वृक्ष
और जानवर जल रहे हों, दुर्दैवसे फसजानेवाले किंतु उससे निकलनेके मार्गको न जाननेवाले पथिकोंको उससे निकलनेकी इच्छासे उल्टे दावानलकी ही तरफ वेगसे जाते हुए देखकर भी ऐसा कौन दयाद्रहृदय और परोपकारपर सज्जन होगा जो कि उनको उस वनसे निकलजानेके समीचीन मार्गका उपदेश देना न चाहे। और जहांतक उससे वने उनके अभ्युद्धारका प्रयत्न न करे । ___इस प्रकार मोक्षमार्गके उपदेश देनेवालोंमें सर्वश्रेष्ठ अर्हत देवकी स्तुति की । अब उनके उपदिष्ट अवरूप समय--सिद्धांतकी ग्रंथरूपमें रचना करनेवाले और इसीलिये समस्त जगत्के उपकारी गणधर देवादिकॉका अंथकार हृदयमें ध्यान करते हैं। -
सूत्रग्रथो गणधरानभिन्नदशपूर्विणः ।
प्रत्येकबुद्धानध्येमि श्रुतकेवलिनस्तथा ॥३॥ अर्हद्भाषित अर्थरूप समय--सिद्धांतकी अंग या पूर्वरूपसे ग्रंथरचना करनेवाले गणधर, अभिन्नदशपूर्वी, प्रत्येकबुद्ध तथा श्रुतकेवलियाँका मैं अपने हृदयकमलमें ध्यान- हर्षित दुआ एकाग्रताके साथ वार वार चिंतवन-करता हूँ।
भगवान्के समवसरणमें बैठनेवाले मुनिआदि बारहविध सभ्योंको जो धारण करते हैं-मिथ्यादर्शनादिसे हटाकर सम्यग्दर्शनादिकमें स्थापित करते हैं उनको गणधर कहते हैं । इनका दूसरा नाम धर्माचार्य भी है। ___ विद्यानुवादका अध्ययन करते समय स्वयं आई हुई वारहसौ विद्याएं जिनको चारित्रसे च्युत नहीं कर सकती और जो उत्पादपूर्वसे लेकर विद्यानुवाद तक दश पूर्वका ज्ञान रखते हैं उनको अभिन्नदशपूर्वी कहते हैं। क्योंकि वे चारित्रसे व्युत न होनेके कारण अमिन और दशपूर्वका ज्ञान रखनेके कारण दशपूर्वी हैं।
अध्याग