Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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इच्छामि णं भंते ! तुडभेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । एवं जहा खंदओ तहा बारस भिक्खु पडिमाओ फासेइ । फासित्ता गुणरयणं वि तवोकम्मं तहेव फासेइ णिरवसेसं । जहा खंदओ तहा चिंतेइ तहा आपुच्छइ । तहा थेरेहिं सद्धिं सेत्तुंजं दुरूहइ, मासियाए संलेहणाए बारस वरिसाइं परियाए जाव सिद्धे । एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।
(पढमं अज्झयणं सम्मत्तं) सूत्र ८:
उसके पश्चात् अन्य किसी दिन, गौतम अणगार जहाँ अरिहंत अरिष्टनेमि विराजमान थे वहाँ आये । अरिहंत अरिष्टनेमि को विनयपूर्वक तीन वार दाईं ओर से बाईं ओर प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन कियाहे भगवन ! मेरी इच्छा है कि आपकी आज्ञा-अनुमति प्राप्त होने पर मैं मासिकी भिक्षु प्रतिमा अंगीकार करूँ ? (अरिहंत अरिष्टनेमि ने कहा-देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो, शुभ कार्य में विलम्ब मत करो ।) इस प्रकार गौतम अणगार ने स्कन्धक मुनि की तरह क्रमशः बारह भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना की । फिर गुणरत्न नामक तप की भी उसी प्रकार सम्पूर्ण आराधना की । (देखिए तालिका नं. १) तप आराधना करते हुए गौतम अणगार ने स्कन्धक मुनि की भांति ही विचार किया, और स्थविर मुनियों को साथ लेकर शत्रुजय पर्वत पर चढ़े | वहाँ शुद्ध भूमि की प्रतिलेखना कर एक मास की संलेखना की । इस प्रकार संलेखना पूर्वक वारह वर्ष की निर्दोष दीक्षा पर्याय पूर्ण करके, केवल ज्ञान प्राप्त कर अन्त में सर्व कर्मों का क्षय करके सिद्ध हए ।
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अन्तकृदशा सूत्र : प्रथम वर्ग
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