Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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साधना विधि-इसमें एक अनशन पारणा, दो अनशन-पारणा इस क्रम से सोलह अनशन तप तक चढ़ा जाता है और फिर इसी क्रम से उतरकर एक अनशन-पारणा तक आया जाता है।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप आर्या कृष्णा ने किया और अपनी आत्म-विशुद्धि की। ६. मुक्तावली तप __ मुक्तावली का शाब्दिक अर्थ है-मोतियों का हार अथवा मोतियों की माला। दूसरे शब्दों में इसे मुक्ताहार भी कहा जाता है। जिस प्रकार मुक्ताहार में मोती क्रम से छोटे-बड़े के रूप में पिरोये जाते हैं तथा अन्त में गुच्छक दिया जाता है, उसी प्रकार से जिस तप में उपवासों की अवस्थिति होती है, उसे मुक्तावली तप कहा जाता है।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप पितृसेन कृष्णा ने किया और अपनी आत्म-विशुद्धि की। ७. आयम्बिल वर्द्धमान तप
इस तप में आयम्बिल की संख्या क्रमशः बढ़ाई जाती है, इस कारण इसका नाम आयम्बिल वर्द्धमान तप है।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप महासेन कृष्णा ने किया और अपनी आत्म-विशुद्धि की। उपसंहार
तपों का यह संक्षिप्त विवेचन है। अन्तकृद्दशासूत्र में राजा श्रेणिक की रानियों-साधिकाओं द्वाग आचरित तपों का वर्णन पढ़ते हैं तो शरीर रोमांच से भर जाता है। सुकुमार शरीर वाली साधिकाओं की ऐसी दुष्कर और कठोर तपोसाधना पर विचार करते हुए हृदय उनके प्रति श्रद्धा से तरंगित होने लगता है, मस्तक झुक जाता है, वाणी वीणा झंकृत हो उठती है-धन्य हैं ऐसी महान् तपोसाधिकाएँ।
अन्तकृद्दशा महिमा
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