Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अध्याय ८
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अन्तकृद्दशासूत्र में वर्णित प्रसिद्ध नगर,
उद्यान आदि
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प्रस्तुत अन्तकृद्दशासूत्र में प्रसंगानुसार कई नगरों, उद्यानों, वनखंडों, वृक्षों, चैत्यों आदि का नामोल्लेख सहित वर्णन हुआ। किन्तु वह वर्णन वहाँ संक्षिप्त है। उसकी (उन सभी की) विशेषताएँ स्पष्ट और विशद रूप से वर्णित नहीं हुई हैं। अधिक जानने की इच्छा वाले पाठकों की जिज्ञासा अतृप्त रह जाती है। उनको तृप्त करने के लिए यहाँ अन्तकृद्दशासूत्र में उल्लिखित/संकेतित नगर, चैत्य, वनखंड आदि का वर्णन किया जा रहा है। चम्पा नगरी
प्रस्तुत सूत्र में सर्वप्रथम चम्पा नगरी का नाम आया है। आर्य सुधर्मा स्वामी इसी नगरी के बाह्य भाग में अवस्थित पूर्णभद्र चैत्य में आर्य जम्बू स्वामी को अष्टम अंग (अन्तकृद्दशासूत्र) की वाचना देते हैं।
चम्पा नगरी पहले अंग देश की राजधानी थी। यह नगरी बहुत ही समृद्ध थी। वैभवशाली और सुरक्षित थी। यहाँ की आबादी घनी थी, विशाल जनसमूह निवास करता था। आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन थे। चोर, बटमार आदि का अभाव था, अतः जन-जीवन शांतिमय था।
यह नगरी स्वचक्र और परचक्र के भय से मुक्त थी। गोपुर, नगर के प्रवेश द्वार सुदृढ़ कपाटों से युक्त थे। अतः शत्रु और विरोधी राजाओं का नगर में प्रवेश करना लगभग असंभव था।
राज-शासन-व्यवस्था सुचारु थी। अतः वहाँ की जनता शासकीय कर्मचारियों के भय से मुक्त थी। सभी अपने धन और प्राणों की सुरक्षा के विषय में आश्वस्त थे।
नगरी के चारों ओर की भूमि उर्वरा थी। सभी प्रकार के धान्य और अन्न प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होते थे। खेत फसलों से लहलहाते रहते थे। संक्षेप में चम्पा नगरी सभी प्रकार से वैभवशाली, समृद्ध और सम्पन्न थी।
राजा श्रेणिक की दुःखद मृत्यु के उपरान्त मगधेश्वर कोणिक ने इसी नगरी को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार यह मगध के विशाल साम्राज्य की राजधानी बन गई। ___ चम्पा की अवस्थिति-स्थानांगसूत्र में प्रसिद्ध और समृद्ध दस नगरियों में चम्पा का भी नामोल्लेख प्राप्त होता है।
किन्तु आधुनिक विचारकों की जिज्ञासा है कि ऐसी समृद्ध नगरी कहाँ अवस्थित थी?
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अन्तकृद्दशा महिमा
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