Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 566
________________ अध्याय १० O 卐 55555555555555555555555॥॥॥ 5 0 विविध प्रसंग 听听听听 58 5555555555555步步为55万岁万万岁万岁万岁万岁万岁万岁万岁万岁万步步步步步555555555步步步步步为中 अन्तकृद्दशासूत्र में विविध विषयों का वर्णन भी हुआ है तो अनेक विषयों का प्रसंगानुसार संकेत भी किया गया है। उदाहरणार्थ स्वप्न-दर्शन आदि के लिए महाबल कुमार का 'जाव महब्बले' शब्दों से संकेत किया गया है तो नगर वर्णन के लिए 'जाव उवाइये' शब्द प्रयुक्त हुए हैं। इन विविध प्रसंगों का स्पष्ट वर्णन आवश्यक है। यहाँ हम कुछ विशिष्ट प्रसंगों को स्पष्ट रूप से देने वर्णित करने का प्रयास कर रहे हैं। १. स्वप्न-वर्णन स्वप्न अथवा dreams ऐसे चलचित्र के समान मानसिक (mental) और चैतसिक तथा अवचेतन मन (subconscious mind) के विकार तथा कल्पनाएँ हैं, जिन्हें सभी संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणी-मनुष्य और तिर्यंच देखते हैं। स्वप्नों का संसार भी बहुत ही विचित्र और अनोखा है। ऐसे-ऐसे दृश्य अर्ध-निद्रित अवस्था में दिखाई देते हैं, जिनकी कल्पना भी जागृत अवस्था में नहीं की जा सकती। स्वप्नावस्था में कभी मानव स्वयं को पर्वत-शिखर पर देखता है तो दूसरे ही क्षण पर्वत की तलहटी में। कभी पक्षियों के समान व्योम विहार करता है तो कभी सागर की उत्ताल तरंगों में मछलियों के समान तैरता हुआ उमंगों से भर जाता है। कभी राजसिंहासन पर तो कभी स्वयं को भिक्षुक बना देखता है। स्वप्न-संसार में राजा से रंक और रंक से राजा बन जाना क्षणभर का खेल है। स्वप्न एक ऐसा कल्पना लोक है, जहाँ स्वप्नद्रष्टा स्वच्छन्द विचरण करता है। स्वप्न कब दिखाई देते हैं ? सामान्य धारणा यह है कि नींद में स्वप्न दिखाई देते हैं। जब व्यक्ति निद्राधीन होता है तब वह स्वप्न देखता है किन्तु यह धारणा सत्य नहीं है। जब व्यक्ति विश्राम करता है, अपनी थकान मिटाने के लिए शय्या पर लेटता है तब उसे नींद आती है। नींद में शरीर निश्चल और निश्चेष्ट हो जाता है, थकान दूर करने का प्रयास करता है। मस्तिष्क की भी लगभग यही दशा होती है। लेकिन अवचेतन मन विश्राम नहीं करता, चंचल रहता है। मस्तिष्क के सुसुप्ति दशा में जाने पर वह बंधनमुक्त होकर सक्रिय हो जाता है। तब ऐसी स्थिति आती है कि व्यक्ति अर्ध-निद्रित दशा में आ जाता है-यानी न वह पूर्ण रूप से जागृत होता है और न घोर निद्रा में निमग्न ही रहता है। इस स्थिति में व्यक्ति स्वप्न देखता है। यह अर्ध-निद्रित-अर्ध-जागृत दशा रात्रि के प्रथम प्रहर में भी हो सकती है, दूसरे, तीसरे और चौथे अन्तकृदशा महिमा • ४६९ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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