Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 571
________________ (९) स्वप्न- - वैडूर्यवर्णी आँतों से मानुषोत्तर पर्वत को आवेष्टित करना । फल - सर्वत्र कीर्ति कौमुदी प्रसारित होना । (१०) स्वप्न - मेरु पर्वत पर चढ़ना । फल - समवसरण में सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म की संस्थापना करना । उपसंहार निष्कर्षतः स्वप्न असंख्य प्रकार के होते हैं। वे शुभ भी होते हैं और अशुभ भी । कुछ स्वप्न आगामी शुभाशुभ घटनाओं का संकेत देते हैं तो कुछ स्वप्न निष्फल भी होते हैं। दैहिक, दैविक, भौतिक, आध्यात्मिक आदि कई प्रकार से इनका वर्गीकरण किया जाता है। रात्रिकाल में भी व्यक्ति स्वप्न देखता है और दिन में सो जाये तो भी स्वप्न देख सकता है। यह भी अनिवार्य नहीं है कि प्रति रात्रि व्यक्ति स्वप्न देखे ही ; कभी वह स्वप्न देखता है और कभी नहीं भी देखता है। स्वप्न शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि रात्रि के प्रथम प्रहर में देखा गया शुभाशुभ सूचक स्वप्न एक वर्ष में फल देता है, द्वितीय प्रहर में देखा गया स्वप्न छह महीने में, तीसरे प्रहर में देखा गया तीन महीने में और अन्तिम प्रहर में देखा गया स्वप्न ७-८ दिन में फल देता है। संक्षेप में स्वप्नों का संसार बड़ा ही अद्भुत और विचित्र है। २. विवाह - वर्णन अनिवार्य परम्परा विवाह मानव समाज की एक अनिवार्य और आवश्यक परम्परा है। अति प्राचीनकाल से यह परम्परा चली आ रही है । सभ्य समाज में तो यह प्रचलित है ही, असभ्य समाजों में भी इसका प्रचलन है। महत्त्व विवाह का महत्त्व समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और धार्मिक (व्यवहार धर्म) सभी दृष्टियों से है। समाजशास्त्रीय विचारकों के मतानुसार विवाह समाज को संगठित और उन्नतिशील बनाने में उपयोगी है। विवाह के कारण परिवारों का निर्माण होता है। उनमें पति-पत्नी, चाचा-चाची, वृद्ध पुरुष और स्त्रियाँ सभी मिल-जुलकर रहते हैं, परस्पर प्रेम-भाव बँटता है तथा शिशुओं का पालन-पोषण उचित ढंग से होता है, इन्हें उत्तम संस्कार दिये जा सकते हैं। सामाजिक दृष्टिकोण भी लगभग यही उपयोगिताएँ विवाह की बताता है। साथ ही वह समाज का विस्तार ग्राम, नगर, प्रान्त, राष्ट्र तक करता है। उनका तर्क है कि सुसंगठित और उत्तम संस्कारों से सम्पन्न विश्व शान्ति की स्थापना में सहायक बन सकता है। दूसरे शब्दों में विश्व शांति की आधारशिला उत्तम संस्कारों से युक्त सुसंगठित समाज है। मनोविज्ञान मानव के मन को केन्द्र मानकर विवाह संस्था की उपयोगिता प्रतिपादित करते हैं। इनका दृष्टिकोण व्यक्तिवादी है। इनका कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों में ही काम अथवा प्रजनन की मूल अन्तकृद्दशा महिमा ४७४ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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