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__स्वप्नों के ये फल तीर्थंकर की अपेक्षा से बताये गये हैं। यद्यपि यही स्वप्न चक्रवर्ती की माताएँ भी देखती हैं किन्तु अन्तर इतना है कि तीर्थंकर की माताएँ इन स्वप्नों को स्पष्ट तथा चमकीला देखती हैं: जवकि चक्रवर्ती की माता अपेक्षाकृत कम स्पष्ट और कम चमकीला।
वासुदेव (अर्ध-चक्रवर्ती) की माताएँ इन १४ महास्वप्नों में से सात स्वप्न देखती हैं। यथा-(१) सिंह, (२) सूर्य, (३) कुम्भ. (४) समुद्र. (५) लक्ष्मी, (६) रत्न-राशि, और (७) अग्नि ।
वलदेव की माताएँ-(१) हाथी, (२) पद्म सरोवर, (३) चन्द्र, और (४) वृषभ-ये चार स्वप्न देखती हैं तथा प्रतिवासुदेव की माताएँ तीन स्वप्न देखती हैं।
प्रस्तुत अन्तकृद्दशासूत्र में गौतमकुमार, गजसुकुमाल कुमार आदि साधकों की माताएँ गर्भ धारण करते समय सिंह का स्वप्न देखती हैं। सिंह शौर्य, पराक्रम, निडरता, अभयता आदि का प्रतीक है। गौतमकुमार आदि के जीवन में ये गुण स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। इस रूप में माताओं द्वारा देखा गया सिंह का स्वप्न पुत्रों के जीवन में सार्थक हुआ। भगवान महावीर के दस स्वप्न
अपने साधनाकाल में भगवान महावीर ने दस स्वप्न देखे थे। ये स्वप्न भी आध्यात्मिक स्वप्नों की कोटि में परिगणित किये जा सकते हैं। वे स्वप्न और उनका फल इस प्रकार है(१) स्वप्न-भयंकर ताड़ पिशाच को मारना।
फल-मोहनीय कर्म को नष्ट करना। (२) स्वप्न-एक श्वेत पुंस्कोकिल का उपस्थित होना।
फल-सदा-सर्वदा शुक्लध्यान में रहना। (३) स्वप्न-एक रंग-बिरंगे पुंस्कोकिल को देखना।
फल-विविध ज्ञान-विज्ञानमय द्वादशांग श्रुत की प्ररूपणा। (४) स्वप्न-दो रत्नमालाएँ देखना।
फल-सर्वविरति और देशविरति-दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा। (५) स्वप्न-श्वेत गोकुल देखना।
फल-चतुर्विध संघ का सेवा में उपस्थित रहना। स्वप्न-विकसित पद्म सरोवर देखना।
फल-चारों प्रकार के देवों का सेवा में रहना। (७) स्वप्न-तरंगाकुल सागर को भुजाओं से तैरकर पार करना।
__फल-संसार-सागर को पार कर लेना। (८) स्वप्न-विश्व को आलोकित करता हुआ जाज्वल्यमान सूर्य।
फल-केवलज्ञान-दर्शन की प्राप्ति ।
अन्तकृददशा महिमा
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