Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 568
________________ आधुनिक काल में कई प्रसिद्ध वैज्ञानिकों और गणितज्ञों के जीवन का ऐसा ही अनुभव है। जिन वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा गणित के क्लिष्ट प्रश्नों को जाग्रत दशा में हल न कर सके. स्वप्न में अनायाय उन्हें उन पेचीदे सिद्धान्तों और गणित के सूक्ष्म प्रश्नों का हल मिल गया। समस्या सुलझ गई। (४) तद्विपरीत स्वप्न-स्वप्न में जैसा देखा हो, उसके विपरीत फल प्राप्त होना। यथा-किसी पुरुप ने स्वप्न में देखा कि उसके हाथों में काँटे भरे हुए हैं, हथेलियाँ छलनी हो गई हैं और जागृत होने पर दूसरे दिन कोई व्यक्ति उसे फूलों का गुलदस्ता भेंट करें। (५) अव्यक्त स्वप्न-स्वप्न में देखी हुई वस्तु आदि का स्पष्ट ज्ञान न होना अथवा जागने पर स्वप्न को भूल जाना, उसकी स्मृति न रहना। इनके अतिरिक्त स्वप्नशास्त्र में स्वप्नों का वर्गीकरण अन्य दृष्टियों से किया गया है। यथा-प्रतीकात्मक. संकेतात्मक. दैहिक, भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक, शुभ-अशुभ आदि । प्रतीकात्मक स्वप्न वह होते हैं, जो किसी दुःखद या सुखद घटना का सूचन करते हैं। यथा-किसी ने स्वप्न में देखा कि आकाश से एक तारा टूटकर गिर गया। दो-चार दिन में उसके किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई। तारे का टूटना किसी प्रियजन की मृत्यु का प्रतीक था। इसी प्रकार किसी तारे की चमक बढ़ जाना, रत्नराशि आदि देखना सुखद घटनाओं का प्रतीक है। कुछ स्वप्न संकेतात्मक होते हैं। वे केवल संकेत देते हैं। उन संकेतों को समझने के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। जैसे स्वप्न में किसी व्यक्ति ने जम्बू-वृक्ष या आम्र-वृक्ष देखा। ये स्वप्न किसी शुभ घटना के संकेतक होते हैं, जैसे-धन, यश, पुत्र आदि की प्राप्ति। __ इसके विपरीत शव यात्रा, कँटीली झाड़ियाँ आदि स्वप्न में दिखाई पड़े तो भविष्य में अशुभ घटनाओं की सूचक होती हैं। देहिक स्वप्न देही (प्राणियों-पशु-पक्षी) से संबंधित होते हैं। स्वप्न में यदि सात्विक पक्षी गजहंस आदि हाथी. सिंह, वृषभ आदि धर्म, शौर्य और धैर्य के प्रतीक रूप पशु-पक्षी दिखाई दें तो मंगल सूचक और वायस (कौआ). चील आदि क्रूर कुटिल पशु आदि दिखाई दें तो भावी अमंगल की सूचना देते हैं। भौतिक स्वप्न वे होते हैं, जिनमें प्राकृतिक दृश्य उद्यान, सरोवर, पर्वत. सागर आदि दिखाई देते हैं अथवा मनुष्य स्वयं को पर्वत शिखर पर चढ़ता हुआ, शान्त सागर अथवा सगेवर में शांतिपूर्वक नेग्ता हुआ देखता है। इन स्वप्नों का फल स्वप्न में दृष्ट वस्तुओं की स्थिति पर निर्भर होता है। यदि सागर में मानव सुखपूर्वक तैरता हुआ देखे तो मंगलसूचक और यदि लहरों के थपेड़ों से खिन्न हुआ देखें तो भावी आपत्तियों का सूचक समझा जाता है। इसी प्रकार सुख से पर्वत शिखर पर पहुँच जाय तो सफलता और सुख तथा उन्नति और यदि श्रमित होकर खेदखिन्न हुआ बीच में बैठ जाय तो असफलता का सूचक होता है। दैविक स्वप्न वे कहलाते हैं, जो या तो प्रीतिवश कोई देव-स्वप्न देखता है, अथवा मनुष्य स्वयं ही अपने को देव के रूप में देखता है। ये शुभ स्वप्न हैं। किन्तु निम्न कोटि के देव, भूत, प्रेत आदि अथवा इनके भयोत्पादक रूप, रोमांचकारी नाच-गान को देखना-आसन्न घोर संकट को सूचित करता है। __अन्तकृद्दशा महिमा . ४७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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