Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 567
________________ प्रहर में भी। और यदि व्यक्ति दिन में सो जाये तो वह दिन के समय भी स्वप्न देख सकता है। कभी-कभी तो बैठे-बैठे झपकियाँ लेते हुए भी स्वप्न-दर्शन कर लेता है। किन्तु सामान्यतया रात्रि का समय ही निद्रा का समय माना जाता है, इसलिए स्वप्नशास्त्र में रात्रि के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ प्रहर में दिखाई देने वाले स्वप्नों के प्रकार, शुभाशुभ फल आदि का विवेचन किया गा है। __ अन्तकृद्दशासूत्र में देवकी आदि जितनी भी रानियों और माताओं के स्वप्न-दर्शन का उल्लेख हुआ है, वे सभी गत्रि के चतुर्थ प्रहर में ही स्वप्न देखती हैं। उन्हें उत्तम प्रकार के स्वप्न आते हैं। स्वप्नों के प्रकार ____ व्यक्ति की कल्पनाओं, इच्छाओं, भावना और कामनाओं के असंख्य प्रकार होते हैं। उसी तरह स्वप्नों के भी असंख्य भेद होते हैं। स्वप्नों के प्रकारों की गणना करना भी कल्पना से परे है। फिर भी स्वप्नशास्त्रों में स्वप्नों का वर्गीकरण किया गया है। भगवती और औपपातिकसूत्र में स्वप्नों के ७२ प्रकार बताए हैं जिनमें से ४२ सामान्य स्वप्न हैं और ३0 महान् स्वप्न कहलाते हैं। इन ३0 में भी १४ अत्यन्त शुभ और महास्वप्न हैं, जिन्हें तीर्थंकरों और चक्रवर्तियों की माताएँ उस समय देखती हैं जब तीर्थंकर और चक्रवर्ती इनके गर्भ में आते हैं। स्वप्नों का वर्गीकरण भगवतीसूत्र में स्वप्नों का वर्गीकरण ५ प्रकार से किया गया है (१) यथातथ्य स्वप्न-दर्शन-यह स्वप्न सत्य होते हैं, भविष्य के शुभाशुभ का स्पष्ट संकेत देते हैं। इनके दो उत्तरभेद हैं-(अ) दृष्टार्थाविसंवादी-स्वप्न में जो कुछ दिखाई दिया हो, जागने पर उसी रूप में घटित हो। यथा-कोई व्यक्ति स्वप्न में देखे कि उसको किसी व्यक्ति ने सुगंधित पुष्प भेंट किया है तो जागने पर भी उसे सुगंधित पुष्प भेंट में प्राप्त हों। (ब) फलाविसंवादी-जिस स्वप्न का फल तो अवश्य मिले, किन्तु उस रूप में प्राप्त न होकर अन्य रूप में प्राप्त हो। यथा-किसी व्यक्ति ने देखा कि 'मैं हाथी पर आरूढ़ हूँ' लेकिन जागृत होने के बाद उसे कुछ समय में धन-संपत्ति की प्राप्ति हो जाय, व्यापार आदि में लक्ष्मी की प्राप्ति हो जाय। (२) प्रतान स्वप्न-प्रतान का अर्थ विस्तार है। विस्तार पूर्ण या लम्बा स्वप्न देखना, जिसमें एक-दूसरी से सम्बन्धित अनेक घटनाओं का क्रम चलता रहे, ऐसे स्वप्न प्रतान स्वप्न कहलाते हैं। ऐसा स्वप्न सत्य भी हो सकता है और असत्य भी। यदि स्वप्न में देखी गई घटनाएँ भयोत्पादक हों तो यह जीवन में आने वाली कठिनाइयों की सूचक भी हो सकती हैं और शुभ घटनाएँ जीवन में उन्नति का संकेत देती हैं। (३) चिन्ता स्वप्न-ये स्वप्न व्यर्थ होते हैं। दिन में किसी बात का, समस्या और उलझन का चिन्तन किया हो, उनका विचार किया हो, उन्हीं का स्वप्न में दिखाई देना; चिन्ता स्वप्न कहलाता है। लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता है कि जिस समस्या का समाधान सोचने पर भी न मिला हो, स्वप्न में अनायास ही उसका समाधान मिल जाय। ऐसी दशा में ये स्वप्न सार्थक भी होते हैं। .४७0. अन्तकृद्दशा महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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