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४. नगर-वर्णन प्राचीन भारत में अयोध्या, काशी, चम्पा, राजगृह, द्वारका आदि कई महानगरियाँ थीं, जो सभी प्रकार से समृद्ध और शोभा-संपन्न थीं।
प्रस्तुत अन्तकृद्दशासूत्र में द्वारका का वर्णन तो कुछ विस्तार से हुआ है। लेकिन शेष नगरियों के लिए 'जहा उवयाइये' संकेत कर दिया गया है। औपपातिकसूत्र में महान् नगरियों का संपूर्ण विवरण प्राप्त होता है।
हम उस विवरण का संक्षिप्त सार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं
महान् नगरियाँ वैभवशाली, सुरक्षित और समृद्ध होती थीं। उनमें आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होते थे अत: वहाँ के निवासी तथा अन्य देशों से आने वाले व्यक्ति प्रसन्न रहते थे। बाबादी घनी होती थी तथा मुर्गों एवं साँड़ों की बहुतायत तथा गायों एवं भेड़ों की प्रचुरता होती थी। कृषि बहुत उत्तम और नगरी के
आसपास की भूमि उपजाऊ होती थी। ____ असामाजिक तत्त्व चोर, पाकेटमार, उपद्रवी जन वहाँ नहीं रह पाते थे। जनता का जीवन सुखी और शांतिमय होता था।
नगरी में नागरिकों के मनोरंजन के साधन भरपूर होते थे। नट, नर्तक, कलाबाज, मल्ल, मसखरे, कथा कहने वाले, रास गाने वाले, तन्तु नाद बजाने वाले आदि बहुत संख्या में होते थे, जिनकी कला से जनता का मनोरंजन होता था। __ ऊँचे-ऊँचे महल और भवन होते थे, जिनके स्वर्णिम कँगूरे सूर्य रश्मियों के पड़ने पर अत्यधिक चमकते थे। सात-सात और नौ-नौ मंजिल के भवन थे, जिनके फर्श मणिखचित होते थे, दीवारें भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्रों से सुशोभित होती थीं और ऐश्वर्य अठखेलियाँ करता था। ___ वहाँ के नागरिक उदार होते थे। अतः भिक्षुकों को दान सरलता से मिल जाता था। कोई भी भूखा नहीं रहता था।
अनेक प्रकार के कौटुम्बिक, पारिवारिक जनों की घनी बस्ती होते हुए भी शान्ति-व्यवस्था रहती थी।
नगरी के राजपथ, रथ्या आदि चौड़े होते थे, जिनसे नागरिकों को गमनागमन में सुविधा रहती थी। विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के बाजार अलग-अलग होते थे, जहाँ वस्तुएँ सजी रहती थीं।
नगरी की सुरक्षा का प्रबन्ध सुदृढ़ था। आठ हाथ चौड़ा और काफी ऊँचा परकोटा होता था। द्वार (किवाड़ों) की बाहरी ओर नुकीले भाले जैसी कीलें लगी रहती थीं। द्वार बहुत मजबूत होते थे। परकोटे के सहारे आश्रय-स्थल बने रहते थे, जिनमें रक्षकगण विश्राम कर सकते थे।
नगर में स्थान-स्थान पर उद्यान रहते थे, जिनमें सरोवर और बावड़ियाँ तथा उनमें कमल-पुष्प खिले रहते थे। वे चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, मनोज्ञ और मन में बस जाने वाले थे।
लगभग ऐसा ही वर्णन अन्तकृद्दशासूत्र में द्वारका नगरी का किया गया है।
इससे स्पष्ट है कि प्राचीनकाल की महानगरियों का ऐसा ही रूप, बसावट, सौन्दर्य और शोभा होती थी।
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अन्तकृदशा महिमा
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