Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 534
________________ यह है मघ मुनि का संपूर्ण जीवनवृत्त। किन्तु प्रस्तुत अंग आगम अन्तकृद्दशासूत्र (१/१८) में जहाँ-जहाँ इनका नाम संकेत किया गया है, वह इनके भगवान महावीर के दर्शन से संबंधित है। उसका वर्णन इस प्रकार है भगवान के आगमन को सुनकर (मेघकुमार के समान) गौतमकुमार हृष्ट-तुष्ट हुए। कौटुम्बिक पुरुषों को चार घंटों वाले धर्मरथ को लाने की आज्ञा देते हैं। उस आज्ञा का पालन कौटुम्बिक पुरुष करते हैं। तत्पश्चात् उस मेघकुमार अथवा गौतमकुमार ने स्नान तथा कौतुक मंगल, प्रायश्चित्त आदि किया। फिर चार घंटों वाले धर्मरथ पर आरूढ़ हुआ। कोरंट वृक्ष के श्वेत फूलों की माला को धारण किया। सुभटों के विपुल समूह वाले परिवार से घिरा हुआ, नगर के बीचों-बीच होकर निकला। निकलकर उद्यान में आया, भगवान महावीर के दिव्यपताका, छत्र आदि अतिशयों को देखा, साथ ही विद्याधरों, चारण मुनियों और जृम्भक देवों को नीचे उतरते तथा ऊपर चढ़ते देखा। यह सब देखकर वह अपने धर्मरथ से उतरा। उतरकर निम्न पाँच अभिगम किये (१) पुष्प, पान आदि सचित्त वस्तुओं का त्याग किया। (२) वस्त्र आदि अचित्त वस्तुओं का त्याग नहीं किया। (३) एक शाटिका (दुपट्टे) का उत्तरासंग किया। (४) भगवान पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़े। (५) मन को एकाग्र किया। यह अभिगम करके भगवान महावीर के पास आया। दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके उनकी तीन प्रदक्षिणाएँ की, स्तुति-वन्दन-नमस्कार किया। फिर भगवान से न अति समीप, न अति दूर समुचित स्थान पर बैठकर, धर्मोपदेश सुनने की इच्छा करता हुआ, नमस्कार करता हुआ, दोनों हाथ जोड़े, सन्मुख रहकर, विनयपूर्वक प्रभु की उपासना करने लगा। __ अन्तकृद्दशासूत्र में ‘एव जहा मेहे वि' संकेत से इतना वर्णन अभीष्ट है। अभिप्राय यह है कि गौतमकुमार भी इसी प्रकार अपने महल से निकले, द्वारका नगरी के मध्य होते हुए भगवान अरिष्टनेमि के पास पहुँचे और उनकी पर्युपासना की। ५. अभयकुमार अभयकुमार मगधेश श्रेणिक का प्रथम पुत्र था। इसकी माता का नाम नन्दा था। अभयकुमार अत्यन्त मेधावी, बुद्धि का वृहस्पति और कुशल तंत्री था। राजा श्रेणिक का दायाँ हाथ और मगध का महामंत्री भी था। इसी की बुद्धि-कुशलता से मगध-जैसे विशाल साम्राज्य का सुशासन सफलतापूर्वक चलता रहा। राजा श्रेणिक को यह अत्यधिक प्रिय था। इसी की योजना से श्रेणिक को चेलना-जैसी जैनधर्मानुरागिणी और अत्यन्त रूपवती नारी प्राप्त हुई थी। __अन्तकृद्दशा महिमा .४३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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