Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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प्रस्तुत अन्तकृद्दशासूत्र के सातवें और आठवें वर्ग में जिन २३ नारी साधिकाओं की लोमहर्षक तपोसाधना का वर्णन हुआ है, वे सव इसी गजा श्रेणिक की गनियाँ थीं।
राजा श्रेणिक का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार हैकुशाग्रपुर-नरेश प्रसेनजित के सौ पुत्र थे, जिनमें श्रेणिक सबसे ज्येष्ठ और मेधावी था।
राजा प्रसेनजित ने एक भील-पुत्री के साथ विवाह इस शर्त पर किया था कि इससे उत्पन्न पुत्र ही राज्य का अधिकारी होगा। भील-कन्या से चिलातीकुमार नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ।
राजा वचनबद्ध थे। चिलातीकुमार को राज्यासीन करना ही था। उन्होंने कुमारों की बुद्धि-परीक्षाएं ली। यद्यपि श्रेणिक सभी में सफल रहा, फिर भी उसे देश-निष्कासन का दण्ड दिया। ___ यह सब-कुछ चिलातीकुमार को राजा बनाने के लिए किया गया। श्रेणिक के जाते ही इसे गन्यासीन कर भी दिया गया।
नगर से चलकर श्रेणिक एक बौद्ध-मट में रुका। बौद्धाचार्य ने मीटे वचनों और आहार-पानी से उसका सत्कार किया। बौद्धाचार्य की इस उदारता से श्रणिक प्रभावित हुआ।
आगे चला तो वेनातट नगर जा पहुँचा। उसके पुण्य प्रभाव, बुद्धि कुशलता से एक सेठ ने अपनी विदुषी और बुद्धिमती पुत्री नन्दा का विवाह उसके साथ कर दिया। नन्दा इस प्रकार श्रेणिक की प्रथम पत्नी थी जिसने अभयकुमार-जैसे मेधावी पुत्र को जन्म दिया।
चिलातीकुमार के कुशासन में प्रजा बहुत दुःखी हो गई, शासन-व्यवस्था बिगड़ गई, आर्थिक स्थिति रसातल को पहुँच गई, प्रजा के दुःख से दु:खी गजा प्रसेनजित मृत्यु-शय्या पर पड़ गये। तब मंत्रियों के बुलावे पर गर्भवती नन्दा को वेनातट पिता के घर छोड़कर ही श्रेणिक को अपने झग्ण पिता के पास आना पड़ा।
श्रेणिक ने शासन-भार संभाला और अपनी नीति कुशलता से सभी को प्रसन्न करके राज्य को समृद्ध किया। उसका यश दूर-दूर तक फैल गया। ५00 राज-कन्याओं के साथ उसका विवाह हो गया जिसमें धारिणी आदि प्रमुख थी।
कुछ वर्ष बाद अभयकुमार की बुद्धिमत्ता से श्रेणिक और उसकी प्रथम पत्नी नन्दा का भी मिलाप हो गया।
राजा श्रेणिक के अभयकुमार, कोणिक, मेघकुमार, कालकुमार, हल्लकुमार, विहल्लकुमार आदि कई
पुत्र थे।
देश निष्कासन के समय बौद्धाचार्य ने जो उदारता दिखाई थी उसके कारण श्रेणिक बौद्धधर्मानुयायी हो गया था। अनाथी मुनि के संपर्क और चेलना रानी की प्रेरणा से उसे यथार्थ तत्त्व का ज्ञान हुआ और वह भगवान महावीर का दृढ़ श्रद्धालु, परम भक्त तथा सम्यक्त्वी बन गया। वह संयम तो न ले सका लेकिन जो श्रमण दीक्षा लेना चाहते थे उन्हें भरपूर सहयोग देकर धर्म प्रचार-प्रसार में सहायक बना, तीर्थंकर नाम-गोत्र का बंध किया। आगामी चौबीसी में वह पद्म नाम का प्रथम तीर्थंकर होगा।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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