Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
चेलना दृढ़ सम्यक्त्वी और भगवान महावीर की परम भक्त थी जबकि श्रेणिक बौद्ध गुरुओं का अनुयायी था। चेलना ने बड़ी कुशलता और बुद्धिमत्ता से यह धार्मिक भेद मिटाकर श्रेणिक को जिनधर्मानुयायी और भगवान महावीर का श्रद्धालु भक्त बना दिया।
यद्यपि श्रेणिक रानी चेलना को अपने प्राणों से भी अधिक प्रेम करते थे, फिर भी एक बार उनके हृदय में चेलना के सतीत्व के प्रति संशय का नाग फुकार उठा।
घटना इस प्रकार हुई
एक बार राजगृह में बहुत तेज शीत लहर चल रही थी। भगवान महावीर वहाँ पधारे। राजा श्रेणिक और रानी चेलना भगवान के दर्शन-वन्दन के लिए रथ में बैठकर गये। लौटते समय उन्होंने देखा कि एक जिनकल्पी मुनि तालाब की पाल पर खड़े कायोत्सर्ग में लीन हैं। गजा-रानी ने उनको वन्दन किया और भाव-विभोर शब्दों में उनकी उत्कृष्ट साधना की प्रशंसा करते हुए महल में आ गये।
तेज शीत लहर तो चल ही रही थी। राजा-रानी शयन-कक्ष में अपने-अपने पलँगों पर रत्नकंवलों में लिपटे पड़े थे। शयन-कक्ष के वातायानों पर मोटे ऊनी कंबल पड़े थे। दीपकों के प्रकाश से कक्ष गरम भी था। फिर भी शीत इतना था कि रत्नकंबल से शरीर का जो भी अंग बाहर रह जाता वही सुन्न पड़ जाता, अकड़ जाता।.
रानी चेलना का भी एक हाथ नींद में रत्नकंबल से बाहर रह गया, अकड़ गया। रानी ने किसी तरह वह हाथ कंबल के अन्दर किया; किन्तु उसके मुख से यह शब्द निकल गये
“ऐसे शीत में उनकी क्या दशा होगी?"
राजा श्रेणिक जाग रहा था। ये शब्द कान में पड़ते ही शंका का नाग उसके मन-मस्तिष्क में फन उठाने लगा। चेलना के सतीत्व के प्रति वह संशय से भर गया। बेचैनी तनाव के कारण रात करवटें बदलते बीती। प्रातः भगवान महावीर के समवसरण में पहुँचा। वन्दन नमस्कार करके पूछा"भगवन् ! मेरी रानी चेलना सती है या गुप्ता?" भगवान महावीर ने कहा
‘श्रेणिक ! राजा चेटक की सातों पुत्रियाँ सती हैं। तुम्हारी रानी चेलना भी सती है। उसके सतीत्व के प्रति संदेह करना भ्रम मात्र है।" फिर भगवान महावीर ने श्रेणिक की शंका निवारण करने हेतु कहा
“श्रेणिक ! जब तुम और रानी चेलना मेरे समवसरण से लौट रहे थे तो तुमने एक जिनकल्पी श्रमण को सरोवर की पाल पर ध्यानस्थ देखा। उन्हीं को लक्ष्य कर चेलना के मुख से ये शब्द निकले-‘ऐसे शीत में उनकी क्या दशा होगी?' जिसका तुमने गलत अर्थ लिया और चेलना को गुप्ता समझ बैठे। वास्तव में चेलना परम श्रमणोपासिका और सती है।"
.४४२.
अन्तकृद्दशा महिमा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org