Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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भगवान महावीर के इन शब्दों से श्रेणिक का भ्रम मिट गया और चेलना का सतीत्व कुन्दन-सा दमक उठा।
अन्तकृद्दशासूत्र में चेलना का नामोल्लेख छठे वर्ग के दूसरे अध्ययन में हुआ है। गजा श्रेणिक के समान रानी नेलना का भी जैन-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
९. माता देवानन्दा देवानन्दा का उल्लेख अन्तकद्दशासूत्र के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन (गजसुकुमाल) में आया। जब देवकी समान रूप-वय वाले छह अनगारों के मातृत्व के विषय में शंका निवारणार्थ जाती है तब वहाँ पाठ आता है-“जहा देवाणंदाए।" अर्थात् जिस प्रकार देवानंदा भगवान महावीर के दर्शनार्थ गई उसी प्रकार देवकी भी भगवान अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ जाती है।
देवानन्दा ब्राह्मणी थी। उसके पति का नाम ऋषभदत्त ब्राह्मण था। वे ब्राह्मण कुण्ड नगर में निवास करते थे।
दसवें प्राणत स्वर्ग से अपना आयुष्य पूर्ण कर भगवान महावीर का जीव देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में अवस्थित हुआ। तीर्थंकरों की माताओं द्वारा देखे जाने वाले चौदह महास्वप्न देवानन्दा ब्राह्मणी ने देखे। उसके हर्ष का पार न रहा।
उसी समय रानी त्रिशला के गर्भ में एक पुत्री भी अवस्थित हुई।
शक्रेन्द्र ने अवधिज्ञान से जाना कि भगवान महावीर का जीव देवानन्दा के गर्भ में अवस्थित हो चुका है तो उसने विचार किया कि तीर्थंकर का जन्म सदा ही क्षत्रिय-कुल में होता है।
उसने तुरन्त हरिणगमैषी देव को गर्भ संहरण की आज्ञा देते हुए कहा-'देवानन्दा का गर्भ त्रिशला गनी की कुक्षि में और त्रिशलादेवी का गर्भ ब्राह्मणी देवानन्दा की कुक्षि में स्थानान्तरित कर दो।"
हरिणगमैषी देव ने ऐसा ही किया। त्रिशलादेवी और ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ परस्पर बदल दिये inter-transfer कर दिये।
यह घटना भगवान महावीर के गर्भ में स्थित होने की ८२वीं रात्रि को हुई। भगवान महावीर ८२ रात्रि तक देवानन्दा के गर्भ में रहे। इस अपेक्षा से देवानन्दा भगवान महावीर की माता थीं।
गर्भ-संहरण के वाद देवानन्दा को ऐसा प्रतीत हुआ कि उसके महास्वप्न लौट रहे हैं। वह बहुत दु:खी हुई। लेकिन जब उसी रात्रि को त्रिशलादेवी ने महास्वप्न देखे तो वह खुशियों से भर गई।
लेकिन गर्भ-संहरण की यह घटना अप्रकट ही रही। किसी को भी ज्ञात न हो सकी।
केवलज्ञान की प्राप्ति के पश्चात एक बार श्रमण भगवान महावीर ब्राह्मणकुण्डग्राम में पधारे। उनके दर्शनों की जिज्ञासा ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानन्दा ब्राह्मणी को भी हुई।
उन्होंने कौटुम्विक बुलाया। स्नान आदि से निवृत्त होकर बहुमूल्य वस्त्र अलंकार धारण किये, धर्मरथ पर सवार हुए, भगवान को दूर से ही देखकर पाँच अभिगम किये और भगवान से न दूर और न अति समीप जाकर उनकी प्रदक्षिणा. वन्दना-नमस्कार किया और उपासना करने लगे। ___ अन्तकृददशा महिमा
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