Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 544
________________ १२. चन्दनबाला अन्तकृद्दशासूत्र के वर्ग ७ और ८ के प्रत्येक अध्ययन में आर्या चन्दनबाला के नाम का उल्लेख प्राप्त होता है। यह भगवान महावीर के श्रमणी-संघ की नायिका और ३६,000 श्रमणियों में प्रम् । दीक्षा-पूर्व तक का चन्दनबाला का जीवन बड़ा ही रोमांचक और कष्टों की जीवन्त गाथा इसका माता-पिता द्वारा दिया गया नाम तो वसुमती था। चन्दनबाला नाम तो इसके चन्दन-जैसे शीर स्वभाव के कारण पड़ा। जैसे-काटने, छीलने, घिसने पर भी चन्दन शीतलता ही प्रदान करता है, उसी प्रकार घोर कष्टों, दुःखों, अपमानपूर्ण स्थितियों में भी उसने कभी क्रोध नहीं किया. किसी अन्य पर आरोप-आक्षेप नहीं लगाया; सदा चन्दन के समान ही शीतल रही। इस कारण उसका गुण-निष्पन्न नाम चन्दनवाला सार्थक और जैन-संसार में प्रसिद्ध रहा। चम्पा-नरेश राजा दधिवाहन और उनकी रानी धारिणी की पुत्री थी-वसुमती। उसका स्वभाव बहुत ही गंभीर और विचारशील था। उस युग में राज्य-विस्तार की लिप्सा अत्यधिक तीव्र थी। राजा लोग कारण हो या न हो एक-दूसरे पर आक्रमण करते ही रहते थे। कौशाम्बी-नरेश शतानीक ने चम्पा पर आक्रमण कर दिया। राजा दधिवाहन पलायन कर गये। कौशाम्बी के सैनिकों को लूट की खुली छूट मिल गई। एक सारथी ने रानी धारिणी और वसुमती का अपहरण किया। रथ में बिठाकर ले चला। बीच जंगल में रथ रोककर उसने रानी धारिणी के समक्ष अपनी कामेच्छा प्रगट की तो अपने शील की रक्षार्थ रानी ने अपनी जीभ खींचकर प्राणोत्सर्ग कर दिया। रथी हतप्रभ और निराश हो गया। वसुमती को धर्म-पुत्री बना लिया। वसुमती को साथ लेकर अपने घर कौशाम्बी पहुँचा तो उसकी पत्नी वसुमती के प्रति सशंकित हो गई। उसने घर में क्लेश मचा दिया। विवश होकर रथी ने वसुमती को कौशाम्बी के उस चौराहे पर लाकर खड़ा किया, जहाँ दास-दासी खरीदे-बेचे जाते थे। धनावा नाम के सेठ ने वसुमती को खरीदा और अपने घर ले आया। धनावा धार्मिक व्यक्ति था, द्वादशव्रती श्रावक था। लेकिन उसकी पत्नी मूला शंकालु स्वभाव की थी। उसके मन में यह शंका घर कर गई कि इस रूपवती को सेठ अपनी पत्नी बना लेगा; फिर मेरी कितनी बुरी दशा होगी। किसी तरह इस लावण्यमयी युवती से पीछा छुड़ाना चाहिए। बड़ी बेतावी से वह अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करने लगी। वह अवसर भी उसे शीघ्र मिल गया। सेठ धनावा एक बार आसपास के गाँवों में कार्यवश चला गया। जाते समय सेठानी मूला से कह गया कि तीन दिन बाद लौटूंगा। सेठानी को मौका मिल गया। उसने सब दास-दासियों को अवकाश दे दिया, सभी अपने-अपने घर चले गये। एकान्त पाकर सेठानी मूला ने वसुमती के बाल काट दिये, वस्त्र उतार लिए, सिर्फ लज्जावसन ___ अन्तकृदशा महिमा .४४७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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