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जैन साहित्य और धर्म में जम्बू स्वामी का जीवन चरित्र अत्यधिक प्रेरक और रोचक रहा है। उनका त्याग श्लाघनीय है। अतुल वैभव और आठ नव-विवाहिता अतिशय रूपवती, समर्पिता स्त्रियों का त्याग जन-मानस में उनके त्याग की प्रेरणा भर देता है।
द्वादशांगी की रचना के निमित्त रूप में उनका नाम जैन संसार में अमर है। अन्तकहशा सूत्र भी उनकी जिज्ञासा का फल है। युग-युग से जम्बूकुमार का नाम और यश अमर है तथा युग-युग तक अमर रहेगा।
४. मेधकुमार मेघकुमार का संकेत अन्तकृद्दशासूत्र में प्रमुख रूप से प्रथम अध्ययन के आठवें सूत्र में जब गौतमकुमार भगवान अरिष्टनेमि की वन्दना करने जाते हैं तो वहाँ उनके गमन सम्बन्धी वर्णन के संबंध में संकेत किया गया है-“एवं जहा मेघे।"-मेधकुमार के समान, यानी जिस प्रकार मेघकुमार भगवान महावीर के वन्दन के लिए निकले, इसी प्रकार गौतमकुमार भगवान अरिष्टनेमि के दर्शन के लिए निकले । दर्शन-वन्दन करके धर्म-श्रवण किया। मेघकुमार का विस्तृत वर्णन ज्ञातासूत्र १/१ में मिलता है।
ये मगध-नरेश राजा श्रेणिक के पुत्र थे। इनकी माता धारिणी थी। धारिणी को दोहद हुआ कि मैं पति के साथ गजारूढ़ होकर वर्षा ऋतु के मेघमय वातावरण में वनश्री का आनन्द लूँ। ___ इस दोहद की पूर्ति अभयकुमार (राजा श्रेणिक के प्रथम पुत्र) ने अपने एक मित्र देव के सहयोग से की थी। __ शिशु का जन्म हुआ। दोहद के आधार पर उसका नाम मेघकुमार रखा गया। वह पुरुषोचित कलाओं में निपुण बना। योग्य वय होने पर उसका विवाह आठ राजकन्याओं के साथ हुआ।
एक बार भगवान महावीर अपने धर्म-परिवार के साथ राजगृह पधारे और गुणशील उद्यान में विराजे। मेघकुमार उनके दर्शन-वन्दन, धर्मदेशना श्रवणार्थ गये। भगवान की देशना सुनकर प्रतिबुद्ध हुए। श्रमण-दीक्षा ग्रहण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
माता-पिता से आज्ञा लेकर दीक्षित हुए।
संयम ग्रहण की पहली रात्रि। वरिष्ठ-कनिष्ठ के क्रम से रात्रि विश्राम के लिए मुनि मेघकुमार को दरवाजे के पास स्थान मिला। सन्तों के आने-जाने के कारण रात्रि के अन्धकार में मेघ मुनि को ठोकरें लगती रहीं। उन्होंने इसे अपमान समझा, रात्रिभर सो नहीं सके। खिन्न होकर संयम-पर्याय का त्याग करने का ही निर्णय कर लिया।
प्रातः संयम उपकरण प्रभु महावीर को लौटाने गये तो प्रभु ने इन्हें, इनके दो पूर्व-जन्मों का वृत्तान्त सुनाया। इन्हें भी जातिस्मरण (पूर्व-जन्मों का) ज्ञान हो गया।
पुनः प्रतिवुद्ध हुए। सन्तों के प्रति सेवाभाव से भर गये, तप-संयम की उत्कृष्ट साधना की और कालधर्म पाकर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव बने।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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