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की भी राजधानी राजगृह ही थी। भगवान महावीर के युग में राजा प्रसेनजित और सम्राट श्रेणिक की राजनगरी का गौरव इसे प्राप्त था।
राजगृह नगर विशाल मगध साम्राज्य की राजधानी थी। मगध का साम्राज्य शक्ति, संपन्नता, समृद्धि और जनसंख्या तथा सैन्य-बल आदि की दृष्टि से प्राचीनकाल से ही वैभवपूर्ण रहा है।
विश्व-विजय का आकांक्षी यूनानी सम्राट सिकन्दर ने जब मगध की विशाल वाहिनी के विषय में सुना तो भारत-विजय की आशा छोड़कर पंचनद (पंजाब) से ही वापस लौट गया।
राजगृह नगर के अन्य नाम भी हैं, यथा-मगधपुर, क्षितिप्रतिष्ठित नगर, चणकपुर, ऋषभपुर, कुशाग्रपुर आदि। इनमें से कुशाग्रपुर और राजगृह अधिक प्रसिद्ध रहे हैं।
कुशाग्रपुर में बार-बार अग्नि प्रकोप हो जाता था, अतः सम्राट् श्रेणिक के पिता नरेश प्रसेनजित ने कुशाग्रपुर से २ कोस दूर इस नगर को अपनी राजधानी बनाया।
राजगृह नगर पंच पहाड़ियों से सुरक्षित है अतः इसे गिरिव्रज भी कहा गया है। यह नगर आज भी मौजूद है और राजगिरि के नाम से प्रसिद्ध है। जैनधर्मानुयायियों का श्रद्धा-केन्द्र
यहाँ भगवान महावीर ने २० वर्षावास किये। मगधेश श्रेणिक, उनका पुत्र अभयकुमार, कोणिक, चेलना आदि रानियाँ भगवान की परम भक्त थीं।
तथागत गौतम बुद्ध ने भी यहाँ विचरण किया था।
यद्यपि प्राचीन राजगृह नगर का वैभव अब नहीं रहा; फिर भी धार्मिक दृष्टि से इसका अब भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।
अन्तकृदशा महिमा
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