Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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जैन संसार में वे अपने गोत्र गौतम नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। जैनाचार्यों ने गौतम शब्द का अनेक प्रकार से निर्वचन करके कई अर्थ बताए हैं; उदाहरणार्थ--गो (वुद्धि). तम (अन्धकार) जिसकी बुद्धि अथवा ज्ञान का अन्धकार समाप्त हो गया है।
अक्खीण महानस लब्धि की अपेक्षा से श्रध्दालुओं की मान्यता है कि गौतम स्वामी के प्रभाव और उनका नाम स्मरण करने से भंडार कभी खाली नहीं होता।
इस प्रकार की और भी मान्यताएँ हैं।
इन सब का सार-संक्षेप यह है कि गौतम स्वामी और उनके नाम के प्रति जैन संसार में बहुत श्रद्धा है। यह सब गौतम स्वामी की विशिष्टता का द्योतक है।
अन्तकृद्दशांगसूत्र में अनेक स्थानों पर गौतम गणधर का उल्लेख हुआ है। साधकों की भिक्षाचर्या के वर्णन में 'जहा गोयम सामी' शब्दों का बार-बार उल्लेख आया। उदाहरणार्थ-तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन में जब छह सहोदर भाई अणगार (सुलसा गाथापत्नी द्वारा पालित, देवकी के पुत्र) भिक्षार्थ द्वारका नगरी में जाने को प्रस्तुत होते हैं तो वहाँ उल्लेख है-'जहा गोयम सामी'-गौतम स्वामी के समान।
इन शब्दों से यह ध्वनित होता है कि जैन संसार में गौतम स्वामी की भिक्षाचर्या आदर्श मानी गई है।
गौतम स्वामी की भिक्षाचर्या विशिष्ट थी अथवा उन्होंने जैन श्रमणों के लिए भिक्षाचर्या का एक आदर्श स्थापित किया था।
उनकी भिक्षाचर्या की विधि इस प्रकार थी-जिस दिन उन्हें पारणा करना होता था उस दिन के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करते, दूसरे प्रहर में ध्यान करते, तीसरे प्रहर में मानसिक और कायिक चंचलता से रहित होकर मुख-वस्त्रिका, वस्त्रों तथा भाजन (पात्रों) की प्रतिलेखना करते-झोली में रखते; फिर भगवान महावीर के पास आते और उन्हें वन्दना नमस्कार करके भिक्षार्थ जाने की आज्ञा माँगते।
भगवान की आज्ञा पाकर वे नगरी में जाते। उच्च-नीच-मध्यम कुलों में भिक्षा की गवेषणा करते। प्रासुक, शुद्ध, एषणीय भिक्षा लाते, वह भिक्षा भगवान महावीर को दिखाते और फिर जिस तरह विल में सर्प प्रवेश करता है, उसी तरह उस आहार-पानी को अस्वाद वृत्ति से उदरस्थ कर लेते।
भिक्षा लाने और उदरस्थ करने की यह विधि जैन संसार में साधु भिक्षाचर्या और भोजनचर्या-एषणा समिति की आधारभूत बन गई। आज तक भी यह परम्परा प्रचलित है। अब भी साधु अपने धर्मगुरु. आचार्य अथवा ज्येष्ठ साधुओं को दिखाकर और उनकी आज्ञा पाकर ही लाये हुए आहार-पानी का उपयोग उपभोग करते हैं।
छटे वर्ग के अतिमुक्तकुमार नामक अध्ययन में गौतम स्वामी का विस्तृत उल्लेख हुआ है। भिक्षाचर्या के साथ उनके सहानुभूति, सरलता, बाल मनोविज्ञान ज्ञाता आदि अनेक गुण उजागर हुए हैं। ____ अपने अनेक गुणों, दिव्य लब्धियों, आध्यात्मिक सर्वोत्कृष्ट पद-प्राप्ति, अक्षय-निधि प्रदाता आदि के कारण गौतम गणधर जैन संसार के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। .४३०.
अन्तकृद्दशा महिमा
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