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६-७ छठी-सातवी प्रतिमा
छठी प्रतिमा का कालमान छह मास है और सातवीं का सात मास। इनमें क्रमशः छह-छह तथा सात-सात दत्तियाँ आहार तथा पानी की ग्रहण की जाती हैं। ८. आठवी प्रतिमा
इस आठवीं प्रतिमा का समय एक सप्ताह सात दिन है।
इस प्रतिमा का साधक एक दिन-रात्रि का निर्जल उपवास (चौविहार) करके ग्राम अथवा नगर की सीमा के बाहर जाकर प्रासुक भूमि पर उत्तानासन, पाश्र्वासन अथवा निषद्यासन से कायोत्सर्ग में लीन हो जाता है।
यदि मल-मूत्र की वाधा हो तो पहले से प्रतिलेखित-प्रमार्जित भूमि पर मल-मूत्र त्यागकर पुनः अपने स्थान पर आकर कायोत्सर्ग में लीन हो जाता है।
इस प्रकार सात दिन तक इस प्रतिमा की आराधना करता है। ९. नौवीं प्रतिमा __ यह नौवीं प्रतिमा भी सात दिन-रात की है। इसकी आराधना भी आठवीं प्रतिमा के समान ही की जाती है। विशेष यह है कि साधक दण्डासन, लकुटासन अथवा उत्कटुकासन से जिनाज्ञानुसार ध्यान एवं कायोत्सर्ग में लीन रहता है। १0. दसवीं प्रतिमा
इस दसवीं प्रतिमा का समय भी सात दिन-रात का है। आराधना विधि भी नौवीं प्रतिमा के समान है। विशेष यह है कि साधक गोदोहिकासन, वीरासन अथवा आम्रकुब्जासन से ध्यान-साधना में लीन रहता है। ११. ग्यारहवीं प्रतिमा
इस प्रतिमा का कालमान एक अहोरात्रि (प्रथम दिन के सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक) है।
इस प्रतिमा की आराधना करने वाला साधक दो दिन का निर्जल उपवास (चौविहार)-बेला करके प्रतिमा की आराधना करता है।
ग्राम, नगर अथवा राजधानी की सीमा से बाहर जाकर प्रासुक भूमि में दोनों पैरों को संकुचित कर और दोनों भुजाओं को जानु पर्यन्त लम्बी करके साधक ध्यान-साधना-कायोत्सर्ग करता है। १२. बारहवीं प्रतिमा
बारहवीं प्रतिमा का समय केवल एक रात्रि प्रमाण है। किन्तु आराधना अति कठिन है।
इसकी आराधना निर्जल तेला (अष्टम भक्त) की तपस्या से की जाती है। साधक ग्राम, नगर आदि के वाह्य भाग में जाकर प्रासुक भूमि में अवस्थित होता है। कोई-कोई दृढ़ मनोबली साधक श्मशान में भी चला जाता है; जैसे-गजसुकुमाल मुनि।
अन्तकृद्दशा महिमा
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