________________
२. अष्ट-अष्टामका प्रातमा
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि आट-आठवी प्रतिमा की आराधना ८ x ८ = ६४ दिनों में होती है।
इसमें प्रथम आठ दिन तक प्रतिदिन एक दत्ती आहार की तथा एक दत्ती पानी की ली जाती है। अगल आट दिनों में प्रतिदिन २ दत्तियाँ आहार की तथा दो दत्तियाँ पानी की। इसी प्रकार क्रमश: प्रत्येक आठ दिनों में दत्तियों की संख्या एक-एक बढ़ाते हुए अन्तिम आठ दिनों में आठ-आठ दत्तियाँ आहार और पानी की ली जाती हैं। __इस प्रतिमा में आहार और पानी की सम्मिलित रूप से दत्तियों की संख्या २८८ होती है। ३. नव-नवमिका प्रतिमा
इसकी आगधना में ९ x ९ = ८१ दिन लगते हैं। पहलं नौ दिनों में एक दत्ती आहार की और एक दत्ती पानी की प्रतिदिन ली जाती है। फिर प्रत्येक नौ दिनों में आहार और पानी की एक-एक दत्ती बढ़ाते हुए अन्तिम नौ दिनों में नौ-नौ दत्तियाँ आहार और पानी की ग्रहण की जाती हैं।
आहार-पानी की सम्मिलित रूप से कुल दत्ती संख्या ४०५ होती है। ४. दश-दशमिका प्रतिमा
इसको पूर्ण करने में 30 x 90 = १00 दिन लगते हैं।
प्रथम दस दिनों में प्रतिदिन एक दत्ती आहार की और एक दी पानी की। फिर क्रमश: प्रत्येक दस दिन में एक-एक दत्ती आहार-पानी की बढ़ाते हुए अन्तिम दस दिनों में दस-दस दत्तियाँ आहार और पानी की ली जाती हैं।
इस प्रतिमा में आहार-पानी की सम्मिलित रूप से कुल ५५ () दत्तियाँ होती हैं।
इन चारों प्रतिमाओं की आगधना आर्या सुकृष्णा ने की थी। ५. लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा
सर्वतोभद्र का अभिप्राय है-चारों ओर से समान। इस प्रतिमा में उपवास तपों को यंत्र में अंकों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस यंत्र में एक से पाँच तक के अंक रखे जाते हैं; क्योंकि इस लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा का आगधक एक उपवास से पाँच उपवास तक की ही तपस्या करता है।
यंत्र में स्थापित अंकों की यह विशेषता होती है कि ऊपर, नीचे, आड़े, तिग्छ किसी भी पद्धति से अंकों को जोड़ा जाय, योगफल सदा ही समान होगा। इसमें एक से पाँच तक के अंक स्थापित होने से योगफल १५ होता है। इसी कारण इसे लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा कहा जाता है।
आराधना विधि-उपवास-पाग्णा, वेला (दो दिवसीय उपवास)-पारणा, तेला-पारणा, चोला-पारणा, पचौला-पारणा; तेला-पाग्णा, चोला-पारणा, पचोला-पारणा, उपवास-पारणा, बेला-पारणा; पचोलापारणा. उपवास-पारणा. वेला-पाग्णा. नेला-पारणा. चोला-पारणा: बेला–पारणा, तेला-पारणा. चोला
__अन्तकृददशा महिमा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org