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अध्याय ७
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निदान
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'निदान' शब्द का आशय
'निदान' एक बहुआयामी और व्यापक अर्थ वाला शब्द है । भिन्न-भिन्न संदर्भों में इसके भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। उदाहरणार्थ-वैद्यक शास्त्र में इसका अर्थ है-रोग के कारणों का निर्णय करना । इसे अंग्रेजी भाषा में diagnosis कहा जाता है।
साधारण भाषा में इस शब्द से दुःख या खेद प्रगट किया जाता है। जैसे-निदान वह परीक्षा में उत्तीर्ण न हो सका।
कोष आदि में 'निदान' शब्द पवित्रता ( purity ), शुद्धिकरण ( purification) आदि के लिए प्रयुक्त होता है । इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग उत्तराध्ययनसूत्र के १८वें अध्ययन की गाथा ५३ में नियाणखमा प्रयुक्त हुआ है।
जैनधर्म का पारिभाषिक शब्द
किन्तु अधिकांशतः 'निदान' शब्द जैन धर्मशास्त्रों में पारिभाषिक (technical) शब्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है और इसका विशिष्ट अर्थ है भावी जीवन में किसी विशिष्ट लक्ष्य, उद्देश्य, पद आदि की प्राप्ति, किसी से बदला लेने की इच्छा, काम-भोग भोगने की अभिलापा आदि का दृढ़ संकल्प |
लेकिन मात्र अभिलाषा, इच्छा या कामना ही निदान का रूप नहीं ले लेती. ऐसी इच्छाएँ तो शेखचिल्ली की कल्पनाएँ (fool's fancy or paradise ) बनकर ही रह जाती हैं।
निदान एक दृढ़ संकल्प (firm volition ) है । अपने मन- अभिलषित की प्राप्ति के लिए तपस्या को दाव पर लगाना पड़ता है । तपस्वी, श्रमण या श्रमणी इन शब्दों द्वारा निदान करता है-
"यदि मेरी तपस्या, साधना, ब्रह्मचर्य पालन अथवा व्रत नियमों का कुछ भी फल हो तो मेरी अमुक अभिलाषा पूर्ण हो । "
इसे तपस्या को बेचना अथवा क्षार करना भी साधारण भाषा में कहा जाना है।
निदान को तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रन्थों में आर्त्तध्यान का चौथा भेद कहा है।
निदान के कारण : राग-द्वेष दोनों ही
यह तथ्य है कि निदान की उत्पत्ति मोहनीय कर्म के कारण ही होती है। मोहनीय कर्म रागरूप भी है। और द्वेषरूप भी। द्वेष से तपस्वी अपने किसी शत्रु, उत्पीड़क आदि के नाश का निदान करता है और गंग
अन्तकृद्दशा महिमा
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