Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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पचोला-पारणा. छह उपवास-पारणा, सात उपवास-पाग्णा, आट उपवास (अठाई)-पारणा. नौ उपवास-पारणा। यह पहली लता है।
सात उपवास-पारणा, आट उपवास-पारणा, नो उपवास-पारणा. पाँच उपवास-पारणा. छह उपवासपारणा। यह दूसरी लता है।
नौ उपवास-पारणा, पाँच उपवास-पारणा. छह उपवास-पारणा. सात उपवास -पारणा. आट उपवायपारणा। यह तीसरी लता है।
छह उपवास-पारणा. सात उपवास-पारणा, आट उपवास-पारणा. नी उपवास-पाग्णा. पाँच उपवासपारणा। यह चौथी लता है।
आठ उपवास-पारणा. नी उपवाय-पागणा, पाँच व्यवाय-पारणा. छह उपवास-पारणा. यात उपवास-- पारणा। यह पाँचवीं लता है।
इन पाँचों लताओं की एक परिपार्टी होती है इसे पूर्ण करने में २00 दिन लगते हैं जिनमें १७५ दिन नपग्या के और २५ दिन पारणं के हैं।
प्रतिमा की सम्पूर्ण आगधना के लिए ऐसी ही चार परिपाटिया की जाती हैं जिनमें कुल ८0 (0 दिन लगते हैं। इनमें से ७0 (0 दिन तपस्या के और १0 () दिन पारण के होते हैं।
पहली परिपार्टी में पारण में लिया जाने वाला भोजन विगय सहित (सर्वकामगुणयुक्त) होता है। दूसरी परिपाटी में लिया जाने वाला भोजन विगयहित; तीमग परिपाटी में लपरहित होता है तथा चौथी परिपार्टी में पारणं के दिन आयंबिल तप किया जाता है।
इस प्रकार विधि-विधान सहित भद्रोत्तर प्रतिमा (नप) की आगधना सम्पूर्ण होती है। इस प्रतिमा की आगधना आर्या गमकृष्णा ने की थी।
उपसंहार
दशाश्रुतस्कन्ध गत १२ भिक्षु प्रतिमाओं. अन्नकशासूत्र में वर्णित ७ भिक्ष प्रतिमाओं के अनुशीलन-परिशीलन और इन दोनों ग्रन्थों में वर्णित प्रतिमाओं की साधना पद्धति पर चिन्तन करने से यह तथ्य स्पष्ट प्रतीत होता है कि ये दोनों प्रकार की प्रतिमाएँ अलग-अलग थीं. इनका परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं था। ___ दोनों ग्रन्थों में वर्णित प्रतिमाओं पर गहगई ये चिन्तन-मनन करने से एक अवधारणा यह भी समुत्पन्न होती है कि संभवतः आगमकाल में और भी विशिष्ट एवं सामान्य साधनाएँ प्रचलित रही हैं। अन्य प्रकार की प्रतिमाएँ भी प्रचलित रही हैं जिनकी आराधना करके साधक सुति के अधिकारी वनते रहे हैं।
किन्तु काल दोष से वे साधना-पतियाँ विलुप्त हो गईं। स्पष्ट साक्ष्य के अभाव में कुछ निश्चित रूप सं कहना असम्भव है। जो प्राप्त है. उसी से सन्तोष करना पड़ता है।
अन्तकृददशा महिमा
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