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क्षुधा-पिपासा की तीव्र वेदना के कारण साधक के भाव कलुषित हो जायें, परिणाम मलिन हो जायें, भावों की उज्ज्वलता उच्च कोटि की न रहे। __ इसलिए संलेखना ग्रहण के पूर्व साधक अपनी शारीरिक स्थिति का विचार तो करे ही साथ ही आयुष्य बल का विचार करना भी अति आवश्यक है।
संसारी व्यक्ति दस प्राणों से जीवित रहता है-वे हैं-इन्द्रिय-बल-प्राण (६-८) मन-वचन-काय-बल-प्राण, (९) श्वासोच्छ्वास, और (१०) आयु-बल-प्राण। इनमें आयु-बल सबसे प्रबल है। इन्द्रिय और योग-बल क्षीण हो सकते हैं, श्वास का आवागमन भी अवरुद्ध हो सकता है; लेकिन आयु शेष हो तो प्राणी पुनः जीवित हो सकता है और वर्षों तक जीवित रहता है। ___आधुनिक युग में भी जब चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) इतना उन्नत हो चुका है, ऐसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं, जब डॉक्टरों ने किसी व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया, जीवन का कोई लक्षण न रहा, परिवारीजन श्मशान ले गये; लेकिन वह चिता पर से उठ बैठा और वर्षों तक जीवित रहा।
उपरोक्त वर्णन का अभिप्राय यह है कि संलेखना ग्रहण करने से पूर्व आयु कर्म पर विचार करना आवश्यक है। इसीलिए जैन शास्त्रों में यह विधान किया गया है कि अनुभवी गुरु से आज्ञा लेकर ही संलेखना ग्रहण करनी चाहिए। संलेखना और अनशन । प्रस्तुत अन्तकृद्दशांगसूत्र और अन्य आगमों में भी जब साधक संलेखना की आराधना करता है तब यही पाठ उपलब्ध होता है- "मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सटैि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता-जाव सिद्धे ।' प्रस्तुत पाठ से यह सिद्ध होता है कि संलेखना और अनशन साथ-साथ चलते हैं और इस सम्मिलित प्रयास से काय और कषाय की क्षीणता होती है तथा संलेखना और अनशन जीवन के अन्तिम समय तक चलते हैं और साधक सुगति अथवा मुक्ति का अधिकारी वन जाता है। जीवन की अन्तिम साधना : संलेखना
जिस प्रकार परीक्षा विद्यार्थी के वर्षभर की शिक्षा की कसौटी है कि उसने कितना पढ़ा, कितना कंठस्थ किया; उसी प्रकार संलेखना साधक-जीवन की अन्तिम परीक्षा है कि उसने धर्म को जीवन में कितना उतारा है, व्रत-नियम-संयम आदि का कितना पालन किया है वह अनुभूति के स्तर पर कितनी डिग्री तक पहुंचा है। __संलेखना, साधक-जीवन की अन्तिम साधना है, इसके उपरान्त अन्य कोई साधना शेष नहीं रहती जैसा कि संलेखना के पाठ से स्पष्ट है-"अपच्छिम मारणंतिय संलेहणा झूसणा आराहणा।" यहाँ अपच्छिम और मारणंतिय-इन दो शब्दों से स्पष्ट है कि संलेखना साधक-जीवन की अन्तिम साधना है और जीवन के अस्त तक इसकी आराधना की जाती है। संलेखना का महत्त्व एवं विशेषताएँ
संलेखना साधक-जीवन की महत्त्वपूर्ण आराधना है। इस साधना से साधक के सभी दु:खों और कष्टों का अन्त हो जाता है।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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