Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अब मेरा शरीर बहुत कृश हो चुका है, बल-वीर्य बहुत कम हो गये हैं। अपनी आत्म-शक्ति उत्थान-पराक्रम से ही उठने-बैठने, चलने-फिरने की क्रिया कर पाता हूँ। इन क्रियाओं में भी मुझे क्लेश का अनुभव होता है। इस जीर्ण शरीर से नित्य क्रियाएँ भी नहीं कर पाता हूँ। धर्म-साधना में यह शरीर साधक न होकर बाधक बनता जा रहा है। ऐसे शरीर को धारण करने से अब कोई लाभ नहीं है। इसे त्याग देना ही श्रेयस्कर है।
इस भावना को गुरु के सामने व्यक्त करने पर जब गुरु की आज्ञा प्राप्त हो जाये और वे संलेखना-संथारा करा दें, तब साधक संलेखना की प्रक्रिया अपनाते हुए विधिवत् उसकी आराधना करता है। संलेखना की विधि __सर्वप्रथम साधक आहार की मात्रा क्रमशः अल्प करता हुआ शरीर को और भी कृश करता है। साथ ही कषायों को भी कृश-क्षीण करता जाता है। __ आहार में यहाँ अशन, पान, खादिम, स्वादिम-चारों प्रकार का आहार सम्मिलित है। साधक अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार क्रमशः आहार आदि को कम करता हुआ, त्याग कर देता है और शांतिपूर्वक मृत्यु की प्रतीक्षा करता है तथा मृत्यु के समय समाधिपूर्वक उसका वरण करता है। संलेखना का कालमान
यों तो संलेखना का कालमान निश्चित करना बहुत ही जटिल समस्या है। क्योंकि अन्तकृद्दशासूत्र में ही कुछ साधक एक मास की संलेखना द्वारा ही मुक्त होते हैं तो अर्जुनमाली अनगार १५ दिन की ही संलेखना के उपरान्त मुक्त हो जाते हैं। वर्तमान काल में भी कोई साधक ४० दिन की संलेखना से तो कोई चौथे दिन ही देह त्याग कर देते हैं।
फिर भी प्रवचनसारोद्धार आदि प्राचीन ग्रन्थों में संलेखना का उत्कृष्ट कालमान बारह वर्ष का बताया गया है, मध्यम १२ मास का और जघन्य ६ मास का कहा गया है। वहाँ विस्तारपूर्वक संलेखना विधि भी वर्णित की गई है।
इस संक्षिप्त लेख में उस समग्र विधि का वर्णन न तो संभव है और न इच्छित ही। लेकिन इतना यथार्थ है कि इस विस्तृत वर्णन से संलेखना की विशुद्धता और महत्त्व पर यथेष्ट प्रकाश पड़ता है।
साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि काय-कषाय को कश करता हुआ तथा मनोनिग्रह के परिणामस्वरूप साधक परमहंस (विकारशून्यता) की स्थिति प्राप्त कर लेता है तथा समाधिपूर्वक-शांत परिणामों से शरीर का त्याग करता है। संलेखना ग्रहण में सतर्कता
संलेखना की आराधना प्रारम्भ करने से पहले साधक को सतर्कता रखना आवश्यक है। यदि उसने संलेखना की आराधना प्रारम्भ कर दी, अनशन भी शुरू कर दिया, काय और कषाय को भी क्षीण कर दिया: किन्तु आयु-कर्म अभी प्रबल है, मृत्यु का समय सन्निकट नहीं है, आयु की डोरी निकट भविष्य में टूटने वाली नहीं है तो अनशन लम्बे समय तक चल सकता है। परिणामस्वरूप यह भी संभव है कि ___ अन्तकृद्दशा गहिमा
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