Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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( १ ) आत्महत्या सदा क्रोध आदि कषायों के तीव्र आवेगों में की जाती है; जबकि संलेखना में कषाय अत्यंत क्षीण होते हैं ।
(२) परिस्थितियों से उत्पीड़ित, उद्विग्न और जिनकी इच्छाएँ पूर्ण होने की आशा समाप्त हो चुकी हो, ऐसे व्यक्ति आत्महत्या करते हैं; जबकि संलेखना करके व्यक्ति न उद्विग्न होते हैं और न इनकी कोई इच्छाएँ ही होती हैं ।
(३) आत्महत्या में बलात् मृत्यु का वरण होता है, मैं मरूंगा ऐसी उत्कट इच्छा होती है; जबकि संलेखना में मृत्यु की इच्छा ही नहीं होती।
(४) आत्महत्या विषभक्षण, शस्त्रास्त्र के प्रयोग, बहुत ऊँचाई से गिरने, गला घोंटने आदि विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा होती है; जबकि संलेखना में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती ।
(५) आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के भाव निश्चित रूप से अशुभ तथा पापमय होते हैं; जबकि संलेखना में निश्चित रूप से शुभ भाव ही होते हैं।
इसी प्रकार और भी अन्तर हैं; जिससे आत्महत्या तथा संलेखना में अन्तर स्पष्ट हो जाता है।
आक्षेपक यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि आहार त्याग से शरीर क्षीण होकर मृत्यु हो जाती है। यह मृत्यु की धीमी प्रक्रिया (slow process) है। अतः आत्मघात ही है।
लेकिन यह कथन सर्वथा भ्रान्त है। आहार कम लेने अथवा सर्वथा त्याग कर देने से शरीर दुर्बल तो हो सकता है; लेकिन आयुकर्म भी टूट जाय, यह आवश्यक नहीं है। फिर आत्महत्या कभी इस प्रकार की धीमी प्रक्रिया से नहीं की जाती। वर्तमान कष्टों से घबड़ाकर व्यक्ति तुरन्त ही आत्मघात कर लेता है, ठीक उसी प्रकार जैसे एक ही झटके में रस्सी तोड़ दी जाती है।
अतः यह निश्चित है कि संलेखना किसी भी प्रकार से आत्महत्या नहीं है।
पिछले ९-१० वर्ष से एक नया शब्द प्रचलित हो गया है - स्वेच्छा-मृत्यु । यह एकांगी शब्द है | वास्तविक शब्द है अंग्रेजी भाषा का शब्द - Mercy Killing ( मर्सी किलिंग) अर्थात् दया- मृत्यु अथवा दया की भावना से मारना ।
उदाहरणार्थ-कोई व्यक्ति घोर वेदना से तड़प रहा है। चिकित्सा की सीमाएँ समाप्त हो चुकी हैं। अच्छी से अच्छी औषध भी न तो उसके रोग का उपचार कर सकती है और न पीड़ा को ही शांत कर पाती है। तब वह व्यक्ति डॉक्टर से प्रार्थना करता है कि डॉक्टर साहब ! मुझे विष का ही इंजेक्शन दे दीजिए, इस घोर पीड़ा से त्राण दिलाइये । और अपनी विवशता से मजबूर होकर वह डॉक्टर विष प्रयोग द्वारा उसका जीवन समाप्त कर देता है।
उस रोगी ने स्वयं मौत माँगी थी, इस अपेक्षा से ऐसे मरण को स्वेच्छा मृत्यु कहा जाता है। लेकिन डॉक्टर के दृष्टिकोण से यह दया- मृत्यु है कि डॉक्टर ने दया करके उसे पीड़ा से मुक्त करा दिया।
यद्यपि नीदरलैंड, स्वीडन आदि देशों की सरकारों ने इस दया- मृत्यु को स्वीकृति दे दी है लेकिन उसमें कानूनी जटिलताएँ इतनी ज्यादा हैं, जिन्हें पूरा करना बहुत मुश्किल है।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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