________________
इस तप की आराधना के काल में तपस्वी दिन के समय उत्कटुक आसन से अवस्थित रहकर सूर्य की आतापना लेता है और रात्रि के समय वस्त्रहीन होकर तथा वीरासन से अवस्थित होकर ध्यान-साधना करता है।
इस प्रकार १६ महीने (४८0 दिन) में सिर्फ ७३ दिन आहार लेना, दिन में सूर्य की आतापना, रात्रि में निर्वस्त्र होकर ध्यान-साधना तथा ४०७ दिन की तपस्या के कारण यह गुणरत्नसंवत्सर तप वहुत ही दुष्कर है।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप गौतमकुमार आदि १८ साधकों तथा किंकम, मकाई, अतिमुक्त आदि ने किया था। इसकी फलश्रुतिरूप कर्मों की निर्जरा की और अन्तकृत केवली बनकर अपने जीवन के लक्ष्यमुक्ति को प्राप्त किया था। २. रत्नावली तप
रत्नावली गले में पहनने का हार (स्त्रियों का आभूषण विशेष) होता है। जिस प्रकार इस हार की रचना होती है, उसी क्रम से जो तपाराधना की जाती है, उसको रत्नावली तप कहा जाता है। रत्नावली हार प्रारम्भ में दोनों ओर से पतला (सूक्ष्म), फिर मोटा और बीच में अधिक मोटा तथा फिर क्रमशः सूक्ष्म आकार वाला होता है। इसी क्रम की तपाराधना रनावली तप है।
जिस प्रकार यह हार शरीर की शोभा बढ़ाता है, उसी प्रकार यह तप भी आत्मा की मलिनता नष्ट करके उसके सद्गुणों को दीपित करता है।
आराधना काल-रत्नावली तप की चार परिपाटियाँ होती हैं। प्रत्येक परिपाटी में १ वर्ष, ३ मास, २२ दिन लगते हैं। अतः चारों परिपाटियों के पूर्ण होने में ५ वर्ष २ मास २८ दिन का समय लगता है।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप आर्या काली ने किया और अपनी आत्म-विशुद्धि की। ३. कनकावली तप
कनकावली भी एक आभूषण का नाम है। जिस प्रकार इस आभूषण की रचना होती है, उसी क्रम से जो तप किया जाता है, वह कनकावली तप कहलाता है। रत्नावली और कनकावली तप में काफी समानता है लेकिन कुछ भिन्नताएँ भी हैं।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप आर्या सुकाली ने किया और अपनी आत्म-विशुद्धि की। ४. लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप
जिस प्रकार चलता हुआ सिंह पीछे मुड़कर गमन किये हुए क्षेत्र को देखता है-सिंहावलोकन करता है। उसी प्रकार जिस तप में की हुई तपस्या को मुड़कर फिर तपस्या करके आगे बढ़ा जाय-तपस्या की जाय, उसे लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की संज्ञा से अभिहित किया जाता है।
अन्तकृद्दशासूत्र में यह तप आर्या महाकाली ने किया था और अपनी आत्म-विशुद्धि की। ५. महासिंहनिष्क्रीड़ित तप
महासिंहनिष्क्रीड़ित तप उतार-चढ़ावयुक्त है।
__अन्तकृद्दशा महिमा
.३५७ .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org