________________
जप्पा५०
09555555555555555555555555555555555555555
विविध तप : विधि, विधान और उद्देश्य
0555550
中步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步
तप क्या है ?
तप आत्म-शोधन की प्रक्रिया है। जिस प्रकार आयुर्वेद में अग्नि के संयोग से पारा शुद्ध करके रसायन बनाया जाता है, जो शरीर के लिए बल-वीर्य वृद्धिकारक होता है। उसी प्रकार अध्यात्म जगत् में तप की प्रक्रिया द्वारा आत्मा और आत्मा से संलग्न शरीर को शुद्ध किया जाता है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है-"तवेण परिसुज्झइ।"-तप द्वारा आत्मा की विशुद्धि होती है।
शुद्धिकारक होने के साथ-साथ यह परम मंगल भी है। दशवैकालिकसूत्र (१/१) में कहा गया है.-धर्म उत्कृष्ट मंगल है और वह अहिंसा, संयम तथा तप रूप है।
तप आत्मोत्थान का साधन है। शरीर और मन की शुद्धि करके यह आत्मा को उत्थान की ओर गतिशील बनाता है।
तप अनेक विशिष्ट शक्तियों का कारण भी है। तप-साधक को अनेक प्रकार की विशिष्ट उपलब्धियाँ होती हैं, जिन्हें लब्धि कहा जाता है।
'तप' का उलटा 'पत' है जिसका अर्थ है-“गिरना''। इसका संकेत यह है कि तप न करने वाले अथवा विपरीत रूप से तप करने वाले पतित हो जाते हैं, आत्मिक दृष्टि से नीचे गिर जाते हैं। तप का उद्देश्य ___ यद्यपि यह सत्य है कि तप से अनेक विशिष्ट शक्तियों की प्राप्ति होती है; लेकिन तप का एक मात्र उद्देश्य कर्मनिर्जरा तथा आत्म-विशुद्धि है। किसी प्रकार की इच्छा या कामना से किया जाने वाला तप, तप नहीं अपितु ताप बन जाता है, जो आत्मा को जलाता रहता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की योनियों में भटकाता रहता है और इसका अन्तिम परिणाम विध्वंसकारी एवं विनाशकारी होता है। ___ यही कारण है कि निष्काम अथवा आत्म-शुद्धि के लिए किये जाने वाले तप को श्रेयस्कर माना गया
तप के विभिन्न प्रकार
उत्तराध्ययनसूत्र आदि आगमों में तप के मुख्य भेद दो बताये गये हैं-(१) बाह्य तप, और (२) आभ्यन्तर तप। __ बाह्य तप यद्यपि मुख्य रूप से बाह्य आवरण-शरीर की शुद्धि करता है, किन्तु साथ ही आत्मा की शुद्धि भी करता है। आभ्यन्तर तप साधना में सक्षम बनकर मुक्ति-प्राप्ति में भी हेतु बनता है जो आत्म-शुद्धि की सहज साधना है।
. ३५0 .
अन्तकृद्दशा महिमा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org