Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
तए णं कण्हेणं वासुदेवेणं एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहिं पुरिससएहिं से महालए इट्टगस्स रासी बहिया रत्थापहाओ अंतोघरंसि
अणुप्पवेसिए। वृद्ध की सहायता सूत्र ३१
उस रात्रि के व्यतीत होने पर दूसरे दिन सूर्योदय की वेला में कृष्ण वासुदेव स्नान कर वस्त्रालंकारों से विभूषित हो, हाथी पर आरूढ़ हुए । वे कोरंट पुष्पों की माला एवं छत्र धारण किये हुए थे । श्वेत एवं उज्ज्वल चामर उनके दायें बायें ढोरे जा रहे थे । अनेक बड़े-बड़े योद्धाओं के समूह से घिरे हुए द्वारका नगरी के राजमार्ग से होते हुए जहां भगवान् अरिष्टनेमि विराजमान थे, वहां के लिये प्रस्थान किया । तब कृष्ण वासुदेव ने द्वारका नगरी के मध्य भाग से जाते समय एक पुरुष को देखा, जो अति वृद्ध, जरा से जर्जरित देह, दुर्बल, अति क्लान्तकुम्हलाया हुआ एवं थका हुआ सा था । उसके घर के बाहर राजमार्ग पर ईंटों का एक विशाल ढेर लगा हुआ था, वह वृद्ध पुरुष उस ढेर में से एक-एक ईंट उठाकर अपने घर में भीतर रख रहा था । उस दुःखी वृद्ध पुरुष को इस तरह एक-एक ईंट उठाते देखकर कृष्ण वासुदेव ने उस पुरुष के प्रति करुणार्द्र होकर उस पर अनुकम्पा करते हुए हाथी पर बैठे-बैठे ही उस ढेर में से एक ईंट उठाई और उसे ले जाकर उसके घर के भीतर रख दी । कृष्ण वासुदेव को इस तरह ईंट उठाते देखकर उनके साथ के अनेकों सैंकड़ों अनुगामी पुरुषों ने भी एक-एक करके ईंटों के उस सम्पूर्ण ढेर को तुरन्त बाहर से उठाकर उसके घर के भीतर पहुँचा दिया । इस प्रकार श्रीकृष्ण के एक ईंट उठाने मात्र से उस वृद्ध जर्जर दुःखी पुरुष का वार-बार चक्कर काटने का कष्ट दूर हो गया ।
अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग
. १०८ .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org