Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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जाव अणगारे जाए ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी । तए णं से मंकाई अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ ।। सेसं जहा खंदयस्स । गुणरयणं तयोकम्मं सोलसवासाइं परियाओ तहेव विपुले सिद्धे ।
(पढमं अज्झयणं)
सूत्र २ :
आर्य सुधर्मा स्वामी हे जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहां गुणशीलक नाम का चैत्य (उद्यान) था । उस नगर में श्रेणिक राजा राज्य करते थे । वहां मंकाई नाम का एक गाथापति रहता था। जो अत्यन्त समृद्ध और सबको आधारभूत यावत् अपरिभूत अर्थात् समाज में, जाति में जिसका कोई अपमान या तिरस्कार नहीं कर सके, ऐसा था । उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर गुणशीलक नामक उद्यान में पधारे । प्रभु का आगमन सुनकर जन परिषद् दर्शनार्थ एवं धर्मोपदेश श्रवणार्थ आई। मंकाई गाथापति ने भगवान के आगमन का वृत्तान्त सुना तो उनके दर्शन करने एवं धर्मोपदेश सुनने के लिये अपने घर से निकला । भगवान ने धर्मोपदेश दिया, जिसे सुनकर मंकाई गाथापति को संसार से वैराग्य हो गया। इसका सभी वर्णन भगवती सूत्र में वर्णित गंगदत्त श्रावक की तरह जानना चाहिए । अर्थात्-उसने अपने घर आकर अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंपा और शिविका (पालकी) में बैठकर श्रमण दीक्षा अंगीकार करने हेतु भगवान की सेवा में आया । यावत् वह अणगार हो गया। ईर्या समिति आदि पांच समितियों से युक्त एवं गुप्तियों से गुप्त ब्रह्मचारी बन गया ।
प्रथम अध्ययन
.१६९ .
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