Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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Hearing these words Sudarsana spoke thus to Arjuna garland-maker-O beloved as gods ! I am, knower of nine elements, Sudarśana sage-worshipper. I am going to garden Gunaśīlaka, to offer my respects to Sramana Bhagawāna Mahāvīra.
सूत्र १७:
तए णं से अज्जुणए मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी-तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! अहमवि तुमए सद्धिं समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव पज्जुवासित्तए । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ! तए णं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ; उवागच्छित्ता अज्जुणए णं मालागारेणं सद्धिं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासइ । तए णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स समणोवासयस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं
धम्ममाइक्खइ । सुदंसणे पडिगए । अर्जुन भगवद् शरण में सूत्र १७:
यह सुनकर अर्जुनमाली सुदर्शन श्रमणोपासक से इस प्रकार बोला-हे देवानुप्रिय ! मैं भी तुम्हारे साथ श्रमण भगवान महावीर की वन्दना नमस्कार करना यावत् सेवा करना चाहता हूँ । श्रेष्ठी सुदर्शन ने कहा-हे देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो । विलम्ब मत करो ! इसके बाद वह सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुनमाली के साथ जहां गुणशीलक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहां आया और अर्जुनमाली के साथ श्रमण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वन्दन-नमस्कार कर उनकी सेवा करने लगा।
तृतीय अध्ययन
.१९७ .
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