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९० में ४० श्रमणों ने शत्रुंजय पर्वत से, १५ श्रमणों ने विपुलगिरि से, ३३ श्रमणियों ने उपाश्रयों से तथा गजसुकुमाल मुनि ने महाकाल श्मशान से मुक्ति प्राप्त की। अर्जुनमालाकार ने किस स्थान से मुक्ति प्राप्त की इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता।
९० में ३२ श्रमणों ने बारह भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना की, २३ ने गुणरत्न-संवत्सर तप किया तथा श्रमणियों ने रत्नावली, कनकावली आदि अनेक प्रकीर्णक तपों की आराधना की।
इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में वर्णित ९० श्रमण - श्रमणियों ने विभिन्न प्रकार की तपागधना की और परिणामस्वरूप मुक्ति का वरण किया।
पंचाचार का वर्णन
भगवान महावीर ने ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार - इन पाँच प्रकार के आचारों का वर्णन किया है तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्षमार्ग बताया है। प्रस्तुत सूत्र में इन पाँचों का प्रक्रियात्मक रूप दिग्दर्शित हुआ है।
मोक्ष की साधना में दर्शन (सम्यग्दर्शन) का मूल स्थान है। देव-गुरु-धर्म पर अटल विश्वास ही सम्यग्दर्शन है । यह प्रस्तुत सूत्र में श्रेष्ठ सुदर्शन में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भगवान महावीर के प्रति दृढ़ विश्वास का ही यह फल था कि उसकी आत्मा धर्म- तेज से जगमगा उठी और उस आत्म-धर्म तेज को यक्ष मुद्गरपाणि भी न सह सका, अर्जुनमाली के शरीर में से निकल भागा।
ज्ञान और दर्शन की आराधना सभी साधक-साधिकाएँ करते हैं, चारित्र का भी पालन करते हैं लेकिन जैसा कि उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है - " तवेण परिसुज्झई । " - आत्मा तप से शुद्ध-विशुद्ध - परिशुद्ध होती है। अतः आत्म-शुद्धि के लिए तप एक महत्त्वपूर्ण रसायन है।
प्रस्तुत सूत्र में विभिन्न प्रकार के तपों का बड़ा ही रोमांचकारी और हृदयग्राही वर्णन हुआ है। श्रमणों और श्रमणियों की तपाराधना का वर्णन सुन- पढ़कर श्रोता- पाठक के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उन साधक-साधिकाओं के प्रति श्रद्धा से मस्तक झुक जाता है। हृदय भाव-विभोर हो जाता है। भावुक हृदय में वहीं हिलोर उठती है- मैं भी ऐसी उत्कृष्ट तपोसाधना' में सक्षम हो सकूँ ।
प्रस्तुत आगम की प्रेरणाएँ
(१) श्रेष्ठि सुदर्शन - जैसी अटल और प्रगाढ़ श्रद्धा तथा विश्वास देव-गुरु-धर्म के प्रति हो । (२) मुनि गजसुकुमाल -जैसी कष्ट - सहिष्णुता, क्षमा भाव, उपसर्ग-सहन और समता भाव। (३) अर्जुनमाली - जैसी तितिक्षा और क्षमा ।
(४) वासुदेव श्रीकृष्ण - जैसा सेवा - सहयोग, धर्म-दलाली और अरिहंत वचनों में विश्वास ।
१. नोट - विभिन्न प्रकार के तप, भिक्षु प्रतिमाओं, प्रतिमा योग का विशद वर्णन इसी पुस्तक के आगामी अध्यायों में किया गया है। वहाँ देखें।
अन्तकृद्दशा महिमा
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