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जैसे-भगवान महावीर के शासन में धर्म-साधना के द्वार प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले हुए थे। इनके धर्मसंघ में राजा-राजकुमार-रानियाँ प्रव्रजित हुई तो मंकाई आदि वैश्य भी और अर्जुनमाली भी। सभी साधकों ने साधना द्वारा मुक्ति प्राप्त की।
साधु-गोचरी के विषय में भी स्पष्ट ज्ञात होता है कि वे केवल उच्च वर्ग से ही भिक्षा प्राप्त नहीं करते थे अपितु उच्च, मध्यम, निम्न सभी कुलों में भिक्षा-प्राप्ति के लिए जाते थे यानी समताभावी श्रमणों के हृदय में कुलों के प्रति कोई भेदभाव नहीं था। साधकों के सम्बन्ध में कुछ विशिष्ट तथ्य
प्रस्तुत अंतकृद्दशासूत्र में ९0 अन्तकृत् केवलियों का वर्णन हुआ है। उनके सम्बन्ध में कुछ विशिष्ट तथ्य ज्ञातव्य हैं। विभिन्न दृष्टियों से इनका वर्णन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।
इन ९0 साधकों में ७५ युवक थे, १ वालक और १४ वृद्ध। ९० में ५७ पुरुष थे तथा ३३ स्त्री साधिकाएँ। ५७ पुरुषों में ५५ साधु विवाहित थे और २ साधु कुमार (अविवाहित) अवस्था में प्रव्रजित हुए थे।
३३ स्त्रियों में २१ साध्वियों ने अपने पतियों से आज्ञा लेकर दीक्षा ग्रहण की, २ साध्वियों के पति पहले ही दीक्षित हो चुके थे तथा १0 साध्वियों के पति का स्वर्गवास हो चुका था।
९0 में ३५ साधु तथा ११ साध्वियाँ द्वारका नगर की, भद्दिलपुर के ६ श्रमण, राजगृह के ६ साधु तथा २२ साध्वियाँ, काकंदी के २ श्रमण, वाणिज्यग्राम के २ श्रमण, श्रावस्ती नगरी के २ श्रमण, पोलासपुर नगर के १ श्रमण, वाराणसी के १ श्रमण तथा साकेत नगर के १ श्रमण व १ साध्वी थे।
९० में यादव-कुल के ३५ साधु एवं १0 साध्वियाँ, श्रेष्ठि-कुल (नाग गाथापति-सुलसा पुत्र) के ६ साधु. २३ साध्वियाँ क्षत्रिय-कुल की (राजा श्रेणिक की रानियाँ), राज-कुल के १ साधु. १ राजकुमार और गृहपति-कुल के १३ साधु तथा १ माली पुत्र (अर्जुनमालाकार) थे। _९० में ४१ साधु भगवान अरिष्टनेमि के शिष्य थे तथा १० श्रमणियाँ यक्षिणी आर्या की शिष्याएँ थीं एवं १६ श्रमण भगवान महावीर के शिष्य तथा २३ श्रमणियाँ आर्या चन्दनबाला की शिष्याएँ थीं।
९) में ३३ श्रमण और ३३ श्रमणियों ने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, १२ श्रमणों ने चौदह पूर्वो का, १0 श्रमणों ने बारह अंगों का तथा २ समिति-गुप्तिधारी श्रमण अंतकृत केवली बनकर मुक्त हुए।
९० में ५५ श्रमणों ने एक मास के संथारे से तथा अर्जुनमालाकार एवं ३३ श्रमणियों ने तीस दिन के संथारे से मुक्ति प्राप्त की किन्तु मुनि गजसुकुमाल बिना संथारे के मुक्त हो गये।
९० में मुनि गजसुकुमाल की एक दिन-रात्रि, अर्जुनमालाकार की छह मास, २ साधकों की पाँच वर्ष, १३ श्रमणियों की बारह वर्ष, १६ की तेईस वर्ष. १ की सत्ताईस वर्ष, १० (श्रमणियों) की आठ से सत्रह वर्ष और ४ श्रमणों की बहुत वर्ष की संयम (दीक्षा) पर्याय रही।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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