Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अध्याय ३
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तीन महान् युग-प्रवर्तक
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१. भगवान अरिष्टनेमि २. वासुदेव श्रीकृष्ण ३. भगवान महावीर युग-प्रवर्तक का अभिप्राय
युग-प्रवर्तक (man of the age) वह विशिष्ट मेधावी और प्रभावशाली तथा महाक्षमता संपन्न व्यक्ति होता है जो युग की धारा को मोड़ने का, पुगनी प्रचलित परम्पराओं (traditions). अन्धविश्वासों, मूढ़ताओं (superstitions) में उचित संशोधन करके इस युग तथा आने वाले युगों के मानवों में नई प्रेरणा और जागृति का संचार करने की सामर्थ्य रखता है।
दूसरे शब्दों में युग-प्रवर्तक वह होता है जो अपने आचार-विचार, व्यवहार आदि क्रिया-कलापों द्वारा जनमानस को इस प्रकार प्रभावित करता है कि युगों-सैकड़ों-हजारों वर्ष बीत जाने पर भी उसका असर जन-जन पर, उनके जीवन पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता रहता है।
प्रत्येक सभ्य समाज की युगधाग (age current) द्विमुखी होती है-(१) आध्यात्मिक (spiritual), और (२) व्यावहारिक (practical)। अध्यात्ममुखी युगधाग आत्मोन्नति, आत्म-विशुद्धि और आत्म-मुक्ति से सम्बन्धित होती है और व्यवहारमुखी युगधारा सामाजिक, पारिवारिक, गजनीतिक-मानव के व्यवहारजगत् को सफलतापूर्वक संचालन के लिए दिग्दर्शक यंत्र के समान होती है।।
युगधारा के ये दो भेद भी स्थूल दृष्टि से किये जाते हैं। भारतीय सभ्यता-संस्कृति के सन्दर्भ में तो व्यावहारिक जगत् के युग-प्रवर्तक भी जीवन का अन्तिम लक्ष्य आत्म-मुक्ति ही निर्धारित करते हैं तथा व्यावहारिक जीवन में सफलता के उपरान्त मानव का चरम उत्कर्ष मुक्ति-प्राप्ति ही स्वीकार करते हैं और जन-जन के मन-मस्तिष्क को उसी लक्ष्य की ओर मोड़ते हैं। अन्तकृद्दशा में उठेंकित महान् युग-प्रवर्तक
द्वादशांगी का आठवाँ अंगसूत्र अन्तकृद्दशासूत्र कई दृष्टियों में सर्वांगपूर्ण आगम है। यह आध्यात्मिकताप्रधान तो है ही, इसकी विषय-वस्तु ही अन्तकृत केवलियों के जीवन के वर्णन से ओत-प्रोत है। इसमें आध्यात्मिक महापुरुषों, युग-प्रवर्तकों, तीर्थंकरों के वर्णन के साथ-साथ भौतिक धरातल के युग-प्रवर्तक का भी यथेष्ट उठेंकन है।
अन्तकृद्दशासूत्र में तीन महान् युग-प्रवर्तकों का वर्णन है। इनमें दो आध्यात्मिक हैं-(१) तीर्थंकर अरिष्टनेमि, और (२) तीर्थंकर महावीर तथा एक लौकिक दृष्टि से युग-प्रवर्तक हैं-वासुदेव श्रीकृष्ण। इस प्रकार प्रस्तुत सूत्र में आध्यात्मिक और लौकिक-दोनों ही धगतल पाठक को प्राप्त होते हैं।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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