Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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लेकिन ज्यों-ज्यों नये-नये ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक अन्वेषण आगे बढ़े, सन्देह का आवरणरूपी अन्धकार छँटता गया, सत्य का सूर्य चमकने लगा और भगवान अरिष्टनेमि एक ऐतिहासिक पुरुष थे, यह तथ्य स्वीकार किया जाने लगा ।
भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता के प्राचीन प्रमाण तो अनेक हैं ही साथ ही आधुनिक इतिहासकारों और मनीषियों ने भी उनकी ऐतिहासिकता असंदिग्ध रूप से स्वीकार की है।
बंदों, महाभारत, पुराणों आदि वैदिक संप्रदाय के ग्रन्थों में अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है. उन्हें आहुति भी समर्पित की गई है।
जैन ग्रन्थों में तो अरिष्टनेमि तीर्थंकर का विशेष वर्णन है। ऋषिभाषित के ४५ अध्ययनों में वर्णित २० प्रत्येकबुद्ध भगवान अरिष्टनेमि के शासनकाल में ही हुए हैं।
प्रस्तुत अन्तकृद्दशा के प्रथम पाँच वर्गों में वर्णित ५१ अन्तकृत् केवली भी भगवान अरिष्टनेमि के ही शासनकाल में हुए हैं। इस सूत्र में श्रीकृष्ण, उनका राज्य-वैभव और द्वारका नगरी की विशालता तथा शोभा सम्पन्नता का विशद वर्णन उपलब्ध होता है।
आधुनिक विद्वानों में भारत के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध दार्शनिक स्व. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने स्वीकार किया है कि यजुर्वेद में आदिनाथ, अजितनाथ और अरिष्टनेमि का उल्लेख उपलब्ध होता है ।
कर्नल टॉड ने 'अनल्स ऑफ दी भाण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट' पत्रिका ( जिल्द २३ पृष्ठ १२८) अरिष्टनेमि के प्रति अपना अभिमत इन शब्दों में अभिव्यक्त किया है- “मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध मेधावी पुरुष हुए हैं - उनमें से एक आदिनाथ हैं, दूसरे नेमिनाथ (अरिष्टनेमि ) हैं ।" ये नेमिनाथ ही स्क्रेण्डीनेविया निवासियों के प्रथम 'ओडिन' देवता तथा चीनवासियों के प्रथम 'फो' देवता थे।
प्रसिद्ध कोषकार नगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. फ्यूहर, प्रोफेसर बारनेट, मिस्टर करवा, डॉ. हरिदत्त, डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकर आदि मनीषी विद्वानों का स्पष्ट अभिमत है कि भगवान अरिष्टनेमि एक महान् प्रभावशाली युग प्रवर्तक मेधावी पुरुष थे । वे ऐतिहासिक पुरुष थे, इसमें सन्देह को कोई अवकाश नहीं है।
अब तो समुद्र में निमग्न द्वारका के अवशेषों का पता भी पुरातत्त्ववेत्ताओं ने लगा लिया है। अतः भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो गई है।
भगवान अरिष्टनेमि की चरित्रगत विशेषताएँ
भगवान अरिष्टनेमि आध्यात्मिक पुरुष थे. तीर्थंकर थे। स्वयं अपनी तथा अन्यों की आत्म-विशुद्धि, बन्धन-मुक्ति ही इनका लक्ष्य था, मोक्षमार्ग का प्रवर्तन ही उनका ध्येय था। जिन क्रियाओं, वृत्ति प्रवृत्ति से कर्म-बन्धन सघन होते हैं, उनसे विरति ही इन्हें इष्ट थी । वे स्वयं संसार और सांसारिक भोगों से उपरत थे। उनकी एक मात्र यही इच्छा थी कि सभी मानव अहिंसक बनें, मदिरा आदि व्यसनों से दूर रहें।
श्रीकृष्ण और इनकी रानियों के अत्यधिक आग्रह को मान्य कर जब वे विवाह हेतु वर बनकर जूनागढ़ जाते हैं तो वहाँ बाड़े में बन्द पशुओं को देखकर करुणाद्रवित हो जाते हैं और वापस लौटकर दीक्षा स्वीकार कर लेते हैं ।
अन्तकृद्दशा महिमा
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