Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ऐसी विषम और विकट परिस्थितियों में भगवान महावीर का जन्म हुआ। माता-पिता और जन्म
आधुनिक बिहार प्रान्त, उस समय वैशाली गणतंत्र के रूप में प्रसिद्ध था। उस गणतन्त्र में क्षत्रियकुण्ड ग्राम के नरेश थे सिद्धार्थ और इनकी रानी थीं त्रिशला। त्रिशलादेवी के अंगजात और राजा सिद्धार्थ के आत्मज के रूप में महावीर का जन्म हुआ। माता-पिता ने इन्हें वर्द्धमान नाम दिया। युग-प्रवर्तक तीर्थंकर महावीर
महावीर बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने खुली आँखों से समाज की दशा देखी और समाज में फैले अज्ञानान्धकार, सामाजिक कुरीतियों, दास-प्रथा, हिंसक यज्ञ, स्त्री की हीन दशा आदि तत्कालीन सभी बुराइयों को दूर करने का निश्चय किया।
वे क्रान्त द्रष्टा थे। समत्व के साधक थे। किसी भी प्रकार की हिंसा उन्हें अरुचिकर थी। जाति-पाँति के भेद से मानव को अस्पर्श्य मानना उन्हें स्वीकार नहीं था। नारी-मुक्ति और उसे पुरुष के समान अधिकार वे देना चाहते थे। धार्मिक वाद-विवादों को वे व्यर्थ का वितण्डावाद मानते थे। उनकी इच्छा समन्वय और समता की थी। उनकी धारणा और विचारणा थी कि तत्त्व के सही स्वरूप को न जानने के कारण ही वितण्डावाद और सामाजिक बुराइयों का सृजन होता है।
उन्होंने अपने साढ़े बारह वर्ष के साधनाकाल में इन्हीं सब समस्याओं का चिन्तन किया और इनके समुचित निदान खोजे।
आपका साधनाकाल बड़ा ही कंटकाकीर्ण रहा। पग-पग पर उपसर्ग-परीषह और संकटों का सामना करना पड़ा। मनुष्य ही नहीं देवों और पशुओं ने भी कष्ट दिये।
लेकिन समत्व-साधना से सब पर विजय प्राप्त की। इनकी करुणा और कल्याण भावना की स्रोतस्विनी के समक्ष गरल भी अमृत बन गया, देव झुक गये और पापी मानवों के हृदय पश्चात्ताप से भर गये। __ तीर्थ की स्थापना के साथ ही उन्होंने अपने धर्मसंघ में मानव-मात्र को स्थान दिया। ब्राह्मण, वेश्य, क्षत्रिय, शूद्र और यहाँ तक कि अनार्य को भी धर्म-साधना के योग्य बताया। वैचारिक मतभेद मिटाने के लिए स्याद्वाद का सिद्धान्त दिया, अहिंसा को प्रतिष्ठा दी और नारी की अस्मिता को उचित महत्त्व प्रदान किया।
प्रस्तुत सूत्र में अन्तकृत् केवली के रूप में २३ स्त्री साधिकाएँ थीं तो पुरुष साधक १६ थे, इनमें क्षत्रिय भी थे तो वैश्य भी थे।
तत्कालीन विषम परिस्थितियों और कुरीतियों का उन्मूलन कर तीर्थंकर महावीर ने समत्व, समन्वय, अहिंसापूर्ण नवयुग का प्रवर्तन किया, जिससे सिसकती मानवता और प्राणी मात्र ने सुख की साँस ली। उनके द्वारा प्रवर्तित सुख का राजमार्ग आज भी प्रचलित है और आगे भी रहेगा। यही युग-प्रवर्तक तीर्थंकर महावीर द्वारा बताये गये मार्ग की शाश्वतता तथा विशेषता है।
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अन्तकृद्दशा महिमा
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