Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अध्याय २
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अन्तक्रिया : अर्थ और उदाहरण
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अन्तकृद्दशासूत्र शब्द के साथ एक अर्थ और भी जुड़ा है-अन्तक्रिया।
जैन सूत्रों में अन्तक्रिया शब्द बहुत प्रसिद्ध है। अन्तकृद्दशासूत्र, स्थानांगसूत्र, भगवतीसूत्र तथा प्रज्ञापनासूत्र में इसकी विस्तारपूर्वक चर्चा हुई है।
कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनका अर्थ या भाव शब्द का अनुसरण करता है किन्तु कुछ शब्द ऐसे हैं, जिनका अर्थ जैसा दीखता है, वैसा नहीं होकर कुछ विशिष्ट भाव द्योतित करता है। अन्तक्रिया शब्द ऐसा ही शब्द है जिसका अर्थ शब्दानुलक्ष्यी कम, विशिष्ट क्रियालक्ष्यी अधिक है। सामान्यतः अन्तक्रिया शब्द का अर्थ है,
अन्तिम क्रिया। प्राणी जब देह त्याग कर देता है, तब उसका शरीर निर्जीव हो जाता है, जिसे 'शव' कहते हैं। उस निर्जीव शरीर को जलाना या जल-प्रवाह में विसर्जित करना आदि जो अन्तिम संस्कार होता है, उसे 'अन्तक्रिया' कहा जाता है-यह लोक प्रचलित अर्थ है, किन्तु जैनदर्शन इस शब्द का अति सूक्ष्म और अत्यन्त भावंयुक्त अर्थ करता है। इसलिए वहाँ अन्तक्रिया शब्द प्रायः निश्चयनय की दृष्टि से व्याख्यायित हुआ है, जिसे ‘एवंभूतनय' भी कह सकते हैं, अर्थात् इस शब्द का वास्तविक और यथार्थ में परिणत अर्थ ही वहाँ ‘अन्तक्रिया' शब्द से जाना गया है।
प्रज्ञापनासूत्र के बीसवें अन्तक्रिया पद में अन्तक्रिया के स्वरूप और चौबीस दण्डकों में कब, कौन जीव अन्तक्रिया करता है, इसका विस्तृत वर्णन है। टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने वहाँ अन्तक्रिया के दोनों ही अर्थ किये हैं-पहला अर्थ है-शरीरान्त-एक भव के शरीगदि से छूटना-मरना तथा दूसरा अर्थ है-भवान्तजन्म-मरण की परम्परा से मुक्त हो जाना-मोक्ष। जैसा कि टीका में कहा है-'अन्तक्रियामिति अन्तः अवसानं। तच्च प्रस्तावादिह कर्मणामवसातव्यम्॥'' (वृत्ति पत्र ३९७) अन्तक्रिया अर्थात् अवसान (समाप्ति/मरण) तथा प्रसंगानुसार सर्व कर्मों का नाश ! इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्रगत वर्णन में अन्तक्रिया, मरण एवं मोक्ष दोनों ही अर्थों में घटित हुआ है। और दोनों दृष्टियों से वहाँ अन्तक्रिया का विचार किया गया है। किन्तु स्थानांगसूत्र में सिर्फ 'मोक्ष-प्राप्ति' अर्थ में ही चार अन्तक्रियाओं का वर्णन है। शब्द का अर्थ
अन्तकृद्दशा एवं स्थानांगसूत्र के अनुसार अन्तक्रिया का अर्थ है-अन्तिम क्रिया। अर्थात् जिसके पश्चात् अन्य कोई क्रिया शेष नहीं रह जाती हो, वह है अन्तक्रिया। शरीर का चिता-संस्कार लौकिक दृष्टि से भले ही अन्तिम क्रिया हो, किन्तु दार्शनिक दृष्टि से वह अन्तिम क्रिया नहीं है, क्योंकि जिसे हम ‘मृत्यु' कहते हैं, वह तो मात्र औदारिक या वैक्रिय शरीर को छोड़ना है। मनुष्य और तिर्यंच के औदारिक शरीर हैं,
१. गीता के अनुसार भी यह मृत्यु पुराना वस्त्र छोड़कर नया वस्त्र धारण करने की तरह, पुराना देह त्यागकर नया देह
धारण करना है।
अन्तकृद्दशा महिमा
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