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इसके बाद आर्या चन्दना की आज्ञा प्राप्त कर उसने नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा अंगीकार की । प्रथम नवक में एक दत्ति आहार और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। इस क्रम से नौवें नवक में नौ दत्तियाँ आहार की और नौ दत्तियाँ पानी की ग्रहण कीं । यह "नवनवमिका" भिक्षु प्रतिमा इक्यासी (८१) दिन-रात में पूरी हुई । इसमें आहार -पानी की चार सौ पांच (४०५) दत्तियाँ हुईं । इस नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा का सुकृष्णा आर्या ने सूत्रोक्त विधि के अनुसार आराधन किया । (देखिए चार्ट नं. ८ ) इसके पश्चात् सुकृष्णा आर्या ने दशदशमिका भिक्षु प्रतिमा अंगीकार की । इसके प्रथम दशक में एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। इस प्रकार क्रमशः दसवें दशक में दस दत्ति भोजन की और दस दत्ति पानी की ग्रहण की । यह दशदशमिका भिक्षु प्रतिमा एक सौ ( 900 ) दिन - रात में पूर्ण होती है । इसमें आहार पानी की सम्मिलित रूप से पाँच सौ पचास (५५0 ) दत्तियाँ होती हैं । इस प्रकार इन भिक्षु प्रतिमाओं hi सूत्रोक्त विधि से आराधन किया । (देखिए चार्ट नं. ९ )
फिर सुकृष्णा आर्या उपवासादि से लेकर अर्द्धमासखमण और मासखमण आदि विविध प्रकार की तपस्या से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी । इस उदार एवं घोर तपस्या के कारण सुकृष्णा आर्या अत्यधिक दुर्बल हो गयी । अन्त में संथारा करके सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर सिद्धगति को प्राप्त हुई । ( पांचवा अध्ययन समाप्त)
Chapter 5
Arya Sukṛṣṇā; Propiliation of Sage (Nun)-Resolution
Maxim 11:
of
Similarly should be known the description Sukṛṣṇādevi, in fifth chapter. She was also the consort of king Srenika and younger step mother of king Konika. Having heard the sermon of Bhagawāna Mahāvīra, she accepted sage (nun ) consecration. Excepting; she began to wander, accepting seven-sevens sage (nun ) resolution penance with the permission of Arya Candanabālā.
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अन्तकृद्दशा सूत्र : अष्टन वर्ग
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