Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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की ओर गतिशील होना अथवा आत्मा का अपनी अशुद्ध अवस्था (दशा) से शुद्ध दशा-प्राप्ति की ओर प्रयासरत होना। दशा का यही अर्थ ग्रहण करना समुचित है।
दशा का दूसरा अर्थ है-जिस अंग आगम में दश अध्ययन हों, वह दशा कहलाता है। यह अर्थ समवायांग (प्रकीर्णक समवाय ९६), जिनदास गणी महत्तर की नन्दी चूर्णि (पत्र ६८) और हरिभद्रसूरि की नन्दीवृत्ति (पत्र ८३) में स्वीकार किया गया है और कहा गया है-प्रस्तुत सूत्र के प्रथम वर्ग के दस अध्ययनों के कारण इस सूत्र का नाम अन्तकृद्दशा है।
इस सूत्र के आठ वर्गों में से प्रथम, पंचम और अष्टम वर्ग में दस-दस अध्ययन हैं। आदि-मध्यम-अन्तिम की अपेक्षा से विचार करने पर यह दूसरा अर्थ भी माना जा सकता है। ३. अंग
अन्तकृद्दशांगसूत्र में निविष्ट तीसरा शब्द 'अंग' है। यह विश्रुत है कि जैन तीर्थंकरों की वाणी को गणधरों ने बारह अंगों में संगुम्फित किया। वे सभी अंग कहलाते हैं। तीर्थंकर की वाणी होने से यह सूत्र भी अंग कहा गया। ४. सूत्र __ अन्तकृद्दशांगसूत्र में प्रयुक्त चौथा शब्द 'सूत्र' है। सूत्र उसे कहा जाता है जिसमें अक्षर तो अल्प हों किन्तु उनका अर्थ विशाल हो; दूसरे शब्दों में, महान् अर्थ को गर्भित किये हुए अल्प अक्षरों की शब्द-रचना को सूत्र संज्ञा से अभिहित किया जाता है।
यह सर्वविदित है कि तीर्थंकर भगवान की वाणी महान अर्थ से गर्भित होती है, जिसे गणधर अल्प शब्दों में निबद्ध करते हैं। इस अपेक्षा से प्रस्तुत आगम के लिए सूत्र शब्द भी सटीक है।
संक्षेप में अन्तकृत् + दशा + अंग + सूत्र-इन चार शब्दों के सम्मिलन से प्रस्तुत आगम का 'अन्तकद्दशांगसूत्र' नाम निष्पन्न हुआ है, जो सटीक और अपनी विषय-वस्तु को प्रगट करने वाला तथा परिचयात्मक है। इस नाम की सार्थकता का परिचय इसमें वर्णित विषय-वस्तु से स्पष्टतया हो जाता है।
आगम का मुख्य परिचय किसी भी ग्रन्थ के परिचय के लिये प्रमुख ९ अंगों अथवा घटकों को जानना अनिवार्य होता है
(१) वर्ण्य-वस्तु (subject-matter), (२) इसमें कितने अध्याय आदि हैं और उनमें क्या वर्णन किया गया है, (३) ग्रन्थ का परिमाण, (४) इन सभी वर्णनों के स्रोत एवं साक्ष्य, (५) ग्रन्थ की भाषा, (६) शैली, (७) वर्णित विषय, (८) प्रेरणाएँ तथा शिक्षाएँ, और (९) महत्त्व। इन सभी के सम्यक् अध्ययन से किसी भी ग्रन्थ का सर्वांगीण परिचय प्राप्त किया जा सकता है।
इसी रीति से हम प्रस्तुत अन्तकृद्दशांगसूत्र का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं।
अन्तकृद्दशा महिमा
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