Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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पढमे नवए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ एक्केक्कं पाणगस्स, जाव नवमे नवए नव-नव-दत्तिं भोयणस्स पडिगाहेइ नव-नव पाणगस्स । एवं खलु नव-नवमियं भिक्खुपडिमं एकासीइ राइंदिएहिं चउहिं पंचोत्तरेहिं, भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहित्ता । दस-दसमियं भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । पढमे दसए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ एक्केक्कं पाणगस्स- जाव दसमे दसए दस-दस भोयणस्स दस-दस पाणगस्स । एवं खलु एयं दस-दसमियं भिक्खुपडिमं एक्केणं राइंदियसएणं अद्धछ हिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहेइ । आराहित्ता बहूहिँ चउत्थ जाव मास-द्धमास-विविह-तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा सुकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव सिद्धा ।
पंचम अध्ययन सूत्र ११:
इसी प्रकार पांचवें अध्ययन में सुकृष्णा देवी का भी वर्णन समझना चाहिये । यह भी श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता थी । इसने भगवान का उपदेश सुनकर श्रमण दीक्षा अंगीकार की । इसमें विशेषता यह है कि आर्या चन्दनबाला की आज्ञा प्राप्त कर आर्या सुकृष्णा
"सप्त-सप्तमिका' भिक्षु प्रतिमा रूप तप अंगीकार करके विचरने लगी, जिसकी विधि इस प्रकार हैप्रथम सप्ताह में एक दत्ति (दाती-अखंडधारा) भोजन की और एक ही दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है । 'दत्ति-का अर्थ है दाता एक वार में या एक ही अंखड धारा में जितना देता है वह एक दत्ति कहलाती है । दूसर सप्ताह में दो-दो दत्ति भोजन को और दो-दा दत्ति पानी की, तीसरे
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अन्तकृद्दशा सूत्र : अष्टम वर्ग
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