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चन्दनबाला की आज्ञा पाकर उसने "आयम्बिल-वर्द्धमान'' नामक तप किया। इसकी विधि इस प्रकार हैसर्वप्रथम आयम्बिल किया । दूसरे दिन उपवास किया । फिर दो आयम्बिल किये । फिर उपवास किया । फिर तीन आयम्विल किये । फिर उपवास किया । फिर चार आयम्बिल किये. फिर उपवास किया तथा पांच आयम्बिल किये । फिर उपवास किया । फिर छ: आयम्बिल किये । फिर उपवास किया । इस प्रकार एक-एक आयम्बिल बढ़ाते हुए मध्य में एक-एक उपवास करते हुए एक सौ आयम्बिल तक किये । फिर उपवास किया । इस प्रकार आयम्बिल वर्द्धमान नामक तप पूरा किया । इस प्रकार महासेनकृष्णा आर्या ने चौदह वर्ष, तीन मास और बीस दिन में "आयम्बिल वर्द्धमान' नामक तप का सूत्रोक्त विधि से आराधन किया। इसमें आयम्विल के पांच हजार पचास दिन तथा उपवास के एक सौ दिन होते हैं। इस तप में चढ़ना ही है, उतरना नहीं । इसमें १४ वर्ष दस दिन आयम्विल के व १00 दिन उपवास के हैं । (देखिए चार्ट नं. १४) इसके बाद महासेनकृष्णा आर्या, आर्या चन्दनबाला के पास आई और वंदन नमस्कार किया । इसके बाद उपवास आदि वहुत-सी तपश्चर्या करती हुई अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी । उन कठिन तपस्याओं के कारण वह अत्यन्त दुर्वल हो गई. तथापि आन्तरिक तप-तेज के कारण वह अत्यन्त शोभित होने लगी । एक दिन पिछली रात्रि के समय महासेनकृष्णा आर्या ने स्कन्दक के समान चिन्तन किया-मेरा शरीर तपस्या से कृश हो रहा है, तथापि अभी तक मुझमें उत्थान, बल, वीर्य आदि हैं । इसलिये कल सूर्योदय होते ही आर्या चन्दनवाला के पास जाकर उनसे आज्ञा लेकर संथारा करूं । तदनुसार दूसरे दिन सूर्योदय होते ही आर्या चन्दनबाला के पास जाकर वन्दन नमस्कार करके संथारे के लिये आज्ञा मांगी । आज्ञा लेकर संथारा ग्रहण किया और मरण की आकांक्षा नहीं करती हुई, धर्मध्यान में तल्लीन रहने लगी।
दसम अध्ययन
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