Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
पढमम्मि सव्यकामपारणयं, बीइयए विगइवज्जं ।
तइयम्मि अलेवाडं, आयंबिलओ चउत्थम्मि ॥ तए णं सा काली अज्जा रयणावलिं तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहिं य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहित्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं वंदइ, णमंसइ; वंदित्ता, णमंसित्ता बहूहिं चउत्थ छट्ठट्टम दसम-दुवालसेहि
तवोकम्मेहि अप्पाणं भावमाणी विहरइ । सूत्र ५ :
इसके बाद काली आर्या ने रत्नावली तप की दूसरी परिपाटी प्रारम्भ की । उन्होंने पहले उपवास किया, उपवास का पारणा विगय रहित अर्थात् दूध, दही, घी, तेल और मीठा इन पांचों विगयों को छोड़ते हुए किया । इस प्रकार उपवास का पारणा करके बेला किया, पारणा किया । इस दूसरी परिपाटी के सभी पारणों में पांचों विगयों का त्याग रखा । इस प्रकार पहली परिपाटी के समान ही इस दूसरी परिपाटी का आराधन किया जाता है । विशेषता यही है कि पारणों में विगयों का सेवन वर्जित रहता है । बाकी तपस्या का क्रम एक समान ही है । इसके पश्चात् तीसरी परिपाटी में वह काली आर्या उपवास करती है, और लेप रहित पारणा करती है । शेष पहले के समान है । ऐसे ही काली आर्या ने चौथी परिपाटी की आराधना की । इसमें विशेषता यह है कि पारणे के दिन आयम्बिल करती है। शेष उसी प्रकार है । (देखिए चार्ट नं. २) गाथार्थ-प्रथम परिपाटी में सर्वकामगुणयुक्त एवं दूसरी में विगय रहित पारणा किया । तीसरी में लेप रहित और चौथी परिपाटी में आयंबिल से पारणा किया । इस भांति काली आर्या ने संपूर्ण रत्नावली तप की आराधना की । इसमें पाँच वर्ष दो महीने और अट्ठाईस दिनों का समय लगा । तप आराधन करने के पश्चात् जहाँ आर्या चंदना थी, वहाँ आई और आर्या चन्दना को वन्दन नमस्कार किया ।
प्रथम अध्ययन
.२४५ .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org