Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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जाव जलंते अज्जचंदणं अज्जं आपुच्छित्ता अज्ज चंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णायाए समाणीए संलेहणा झूसणा झूसियाए भत्त-पाणपडियाइक्खियाए कालं अणवकंखमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अजं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीइच्छामि णं अज्जाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा जाव विहरित्तए । अहा सुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह । तओ काली अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा झूसणा झूसिया जाव विहरइ । सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाइं अट्ठ संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सटुिं भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्सट्टाए कीरइ णग्गभावे जाव चरिमुस्सासणीसासेहिं सिद्धा ।
(पढमं अज्झयणं) सूत्र ७:
फिर किसी दिन रात्रि के पिछले प्रहर में काली आर्या के हृदय में स्कन्दक मुनि के समान इस प्रकार विचार उत्पन्न हुआ-'इस कठोर तप साधना के कारण मेरा शरीर अत्यन्त कृश हो गया है, तथापि जब तक मेरे इस शरीर में उत्थान (उठने बैठने की शक्ति) कर्म, (संयम क्रियाएं करने की क्षमता) बल, वीर्य (जीवनी शक्ति) और पुरुषाकार (पुरुषार्थ-अदीन भावना) पराक्रम है, मन में श्रद्धा, धैर्य एवं वैराग्य है, तब तक मेरे लिये उचित है कि कल सूर्योदय होने के पश्चात् मैं चन्दना आर्या को पूछकर उनकी आज्ञा प्राप्त होने पर संलेखना झूसणा का सेवन करती हुई भक्तपान का
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अन्तकृद्दशा सूत्र : अष्टम वर्ग
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