Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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तहेव चत्तारि परिवाडीओ । एक्काए परिवाडीए छम्मासा सत्त य दिवसा । चउन्हं दो वरिसा अट्ठावीस य दिवसा जाव सिद्धा ।
सूत्र ९ :
जम्बूस्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा - हे भगवन् ! आठवें वर्ग के तीसरे अध्ययन का भगवान ने क्या भाव फरमाया है ?
सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जम्बू ! तीसरे अध्ययन में महाकाली रानी का वर्णन है । वह श्रेणिक राजा की भार्या और कोणिक राजा की छोटी माता थी । उन्होंने भी सुकाली रानी के समान दीक्षा धारण की और लघुसिंह - निष्क्रीड़ित नामक तप किया ।
वह इस प्रकार है - सर्वप्रथम उपवास किया, पारणा किया, ( इसकी भी पहली परिपाटी के सभी पारणों में विगयों का सेवन वर्जित नहीं था ) फिर बेला किया, फिर पारणा करके उपवास किया । फिर पारणा करके तेला किया । इस प्रकार आगे बेला, चोला, तेला, पचोला, चोला, छह, पाँच, सात, छह, आठ, सात, नौ और आठ किये ।
फिर नौ, सात, आठ, छह, सात, पाँच, छह, चार, पाँच, तीन, चार, दो, तीन, उपवास, दो और उपवास किया । इस प्रकार लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की एक परिपाटी की ।
एक परिपाटी में छह महीने और सात दिन लगे । जिसमें पारणे के तेतीस दिन और तपस्या के पाँच मास और तीन दिन हुए । इस प्रकार महाकाली आर्या ने चार परिपाटी की, जिसमें दो वर्ष और अट्ठाईस दिन लगे ।
इस प्रकार महाकाली आर्या ने लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की सूत्रोक्त विधि से आराधना की । तत्पश्चात् महाकाली आर्या ने अनेक प्रकार की फुटकर तपस्याएँ कीं । अन्त में संथारा करके सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त हुई । (देखिए चार्ट नं. ४)
तृतीय अध्ययन
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