Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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When parents could not prevail upon Atimuktakumăra by various reasons and arguments, they spoke-Son ! We desire to see your royal splendour may be for even one day i.e., we want to coronate you. Then Atimuktakumāra remained silent at the words of his parents. Then his anointment ceremony was celebrated like Mahābala. Then he accepted consecration in presence of Bhagawāna Mahāvīra, studied Sāmāyika etc., eleven holy scriptures (angas), practised sage conduct for many years and observed Gunaratna Samvatsara austerity until he was beatified on Vipulagiri.
विवेचन
अतिमुक्त कुमार के जीवन संबंधी अंतगडसूत्र के इस वर्णन के अतिरिक्त भगवती सूत्र के पांचवें शतक, चतुर्थ उद्देशक में मुनि अतिमुक्त के जीवन की एक घटना का बड़ा सुन्दर विवेचन मिलता है । यहां आवश्यक होने से मूल पाठ का भावानुवाद दिया जा रहा है--
श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य अतिमुक्त कुमार नाम के श्रमण थे । वे प्रकृति से भद्र और विनीत थे । वे अतिमुक्त कुमार श्रमण किसी दिन महावर्षा बरसने पर अपना रजोहरण तथा पात्र लेकर बाहर स्थंडिल हेतु (शौच निवृत्ति के लिए) गये । जाते हुए अतिमुक्त कुमार श्रमण ने मार्ग में बहते हुए पानी के एक छोटे नाले को देखा । देखकर उन्होंने उस नाले की मिट्टी की पाल बांधी । इसके बाद जिस प्रकार नाविक अपनी नाव को पानी में छोड़ता है, उसी तरह उन्होंने भी अपने पात्र को उस पानी में छोड़ा और “यह मेरी नाव है, यह मेरी नाव है"-ऐसा कहकर पात्र को पानी में तिराते हुए क्रीडा करने लगे । अतिमुक्त कुमार श्रमण को ऐसा करते हुए देखकर स्थविर मुनि उन्हें कहे बिना ही चले आए और श्रमण भगवान महावीर स्वामी से उन्होंने पूछा
भगवन् ! आपका शिष्य अतिमुक्त कुमार श्रमण कितने भव करने के बाद सिद्ध होगा ? यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा ?
श्रमण भगवान महावीर स्वामी उन स्थविर मुनियों को सम्बोधित करके कहने लगे-हे आर्यो ! प्रकृति से भद्र यावत् प्रकृति से विनीत मेरा अंतेवासी अतिमुक्त कुमार, इसी भव में सिद्ध होगा यावत् सभी दु:खों का अन्त करेगा । अतः हे आर्यो ! तुम अतिमुक्त श्रमण की हीलना, निन्दा, खिंसना, गर्दा और अपमान मत करो । किन्तु तुम अग्लान भाव से अतिमुक्त कुमार श्रमण को ग्रहण करो, उसकी सहायता करो और आहार पानी के द्वारा विनयपूर्वक वैयावृत्य करो । अतिमुक्त कुमार श्रमण चरमशरीरी है और इसी भव में सब कर्मों का क्षय करने वाला है ।
१५याँ अध्ययन
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